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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
अन्त
समय निमाज में जाकर अपना वचन निभाया था तेला कर संथारे का इक, नव इतिहास जैन धर्म की शान बढ़ी मुनि 'गौतम' जपता माला रे ॥गुरु ॥
बनाया था।
गुरुवर हस्ती का, दुनिया में नाम था, दुनिया में नाम था । आज भी है और कल भी रहेगा।
कल भी रहेगा ||र ||
बनकर के
क्या क्या सुनायें, वो जन-जन का राम था, जन-जन का राम था। आज भी है और वो आए थे सच्चे मसीहा महावीर के अनमोल दिये मोती हमें आंगन से स्वाध्याय सामायिक उनका पैगाम था, उनका पैगाम हमें शब्द नहीं मिलते जिनसे गुणगान चमका जो दिवाकर सा तो क्या सम्मान करें उनका
चुनकर
करें
उनका,
गुणगान उनका घर-घर सुबह और शाम था, सुबह और शाम था ॥२ ॥ आज भी ॥ कई वर्षों में ऐसा कभी कोई सन्त रत्न होता उपकार याद जिसके
है करे तो युवा बाल वृद्ध रोता है,
विचरे जहाँ-जहाँ धन्य वह मुकाम था, धन्य वह मुकाम था. ॥३ ॥ आज भी ॥ गुरु दर्शन पाने को भक्त दौड़ के आते थे तीरथ मेला रहता जहाँ कहीं आप चले जाते
'गौतम' की आस्था का वही एक धाम था, वही एक धाम था ॥४ ॥ आज भी ॥
हस्ती गुरुवर के सामायिक और
(२४)
दुनिया में नाम था
(तर्ज- सौ साल पहले....)
(२५) प्रतिदिन करो
(तर्ज सिद्ध अरिहन्त में मन रमाते चलो...)
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उपदेश दिल में
स्वाध्याय
प्रतिदिन
परिवार
संग
सुपथ
विपुल वैभव न
मनुज
"
स्वाध्याय से
के
था. ॥ १ ॥ आज भी ॥
धरो ।
करो ॥ ॥
जायेगा
पायेगा
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