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( तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
६७१ निकलते ही बच्चे की आँख खुली और माँ ने उसे दूध पिलाया। बच्चा एकदम स्वस्थ होगया, आज वह युवा है।
२७, चन्द्रप्पन स्ट्रीट साहुकार पेट, चेन्नई
हकलाहट दूर हुई
• श्री प्रकाश नागोरी १९८८ में पूज्य आचार्य श्री १००८ श्री हस्तीमल जी म.सा. के कोटा में दर्शन करने का अवसर प्राप्त हुआ। वहाँ आदरणीय श्री फूलचंदजी मेहता, उदयपुर ने आचार्य श्री से मेरा परिचय कराते हुये कहा कि मैं लगभग दस वर्षों से स्वाध्याय संघ का सदस्य हूँ, सामान्यत: जानकारी (तत्त्वों की) अच्छी है, लेकिन पर्युषण में सेवाएं नहीं देता हूँ। तब आचार्य श्री ने मुझे पर्युषण में सेवाएँ नहीं देने का कारण पूछा । मैंने आचार्य श्री से निवेदन किया कि दुकान पर कार्य करने वाला मैं अकेला हूँ तथा बोलने में मैं हकलाता हूँ। तब आचार्य श्री ने फरमाया यह बहाना नहीं चलेगा, तुम्हें कम से कम तीन वर्ष लगातार सेवाएँ देनी हैं।
मुझमें आचार्य श्री के आदेश को नकारने का साहस नहीं हो पाया, मैंने आचार्य श्री के समक्ष तीन वर्षों तक पर्युषण में सेवाएँ देने का संकल्प व्यक्त किया। यह चमत्कार ही हुआ कि पर्युषण में प्रवचन देते समय मेरी हकलाहट समाप्त हो गई।
पो. सिंगोली, जिला - मन्दसौर (म.प्र.) आराधना का प्रभाव
• श्री भोपालचन्द पगारिया आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज साहब का वर्षावास इन्दौर था। मेरी तथा मेरे परिवार की तीव्र इच्छा थी कि आचार्य श्री के दर्शन करने हैं। इन्दौर फोन करने पर ज्ञात हुआ कि इन्दौर के पास जो नदी है उसका पानी करीब ९ फीट ऊंचा चल रहा है। जो इन्दौर पहुंचना मुश्किल है पर हमारी इच्छा तो दर्शन करने की थी। यह प्रबल विश्वास था कि गुरुदेव की कृपा से यह इच्छा अवश्य पूर्ण होगी। हम कार द्वारा रवाना हुए, नदी के पास पहुंचने पर पानी बराबर हो गया। हम नदी पार कर इन्दौर पहुंच गये तथा बाद में फिर पानी का चढ़ाव शुरू हो गया। ऐसा था आचार्य श्री की आराधना का प्रभाव ।
No. 51, B.V.K. Iyengar Road, Bangalore 560025 व्रत-नियम की प्रेरणा
. श्री किशनलाल कोठारी
हमारे ग्राम जामनेर के धर्मप्रेमी श्रावक श्री फतेहराज जी चोरड़िया के साथ मैं भी इन्दौर में आचार्य श्री के दर्शनार्थ गया। गुरुदेव ने व्रतों का महत्त्व समझाकर १२ व्रतों के नियम कराए। इससे मेरा जीवन संयमी हो गया। मैं उन व्रतों का पालन आज भी पूरी तत्परता से कर रहा हूँ। आचार्य श्री के दो चातुर्मास जलगाँव में हुए। उस समय विहार काल में ९-१० दिन जामनेर में विराजे । उस समय मैंने प्रतिक्रमण पूरा सीखा, गुरुदेव की प्रेरणा से मैं नियमित रूप से दोनों समय प्रतिक्रमण और प्रतिदिन ५ सामायिक करता हूँ। जलगाँव के दूसरे चातुर्मास के समय गुरुदेव ने हमें आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत दिलाया। गुरुदेव की वाणी से मैंने जमीकन्द का सेवन नहीं करने का नियम