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देवी बलिदान नहीं माँगती
नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं
श्री गिरधारीलाल जैन
परम पूज्य गुरुदेव श्री हस्तीमलजी म.सा. जब दक्षिण भारत पुनः राजस्थान की भूमि की ओर पधारे तब | मुझे भी भगवन्त के साथ विहार का लाभ मिला। एक दिन भगवन्त का रात्रि प्रवास सड़क के एक किनारे छोटे गाँव में हुआ, जहाँ जैन घर एक भी नहीं था। सभी बस्ती अजैन घरों की थी। कच्चे मकान थे । एक ही मकान पक्का वहाँ के सरपंच का था। जिसके चारों तरफ दीवार का परकोटा बना हुआ था। उसके समीप ही एक हरिजनों | की देवी का कच्चा चबूतरा बना हुआ था । आचार्य भगवन्त श्री हस्तीमलजी म.सा. सरपंच के मकान में ठहरे हुए थे । उसी दिन एक हरिजन परिवार ने देवी के बलि चढाने हेतु बकरा बांध रखा था। जब आचार्य भगवन्त को बकरे की | बलि चढ़ाने की बात ज्ञात हुई तो गाँव के सरपंच एवं मुखिया लोगों को बुलाकर भगवन्त ने कहा कि आप लोग इस हरिजन परिवार को समझा देवें कि जीव को मार कर खाने से कोई फायदा नहीं है । गाँव वालों ने काफी | समझाया, लेकिन हरिजन परिवार नहीं समझा और कहने लगा कि मेरी देवी रूठ जायेगी। इसने मेरी मनोकामना पूरी | की है। लेकिन देवी जिसके शरीर में आती थी वह पुजारी बाहर गाँव का रहने वाला था । वह रात्रि को ७ बजे आया, लोगों की भीड़ लगी हुई थी। साधु व श्रावक सभी प्रतिक्रमण कर रहे थे। देवी के पुजारी को किसी भी माहौल का पता नहीं था । वह आते ही चबूतरे पर चढ़ा और देवी आ गई। कहने लगी " अरे दुष्टों ! मेरा नाम | बदनाम करते हो । जो महापुरुष यहाँ बैठा हुआ है, देवताओं का राजा इन्द्र भी जिसकी वाणी को नहीं ठुकराता है, | उसके सामने तुमने मुझे बदनाम कर दिया है कि देवी बकरे माँगती है। मैंने कब बकरे मांगे हैं। तुम तुम्हारे खाने | वास्ते बकरे मेरे नाम पर बलि करते हो। तुम्हारे कार्य का फल तुम भोगोगे ।” इतना कह कर देवी शरीर से निकल | गई। जबकि उस पुजारी को यह भी मालूम नहीं था कि यहां संत विराज रहे हैं। दूसरे दिन प्रात: सभी ग्रामवासी व | हरिजन परिवार गुरुदेव के जय जयकार के नारे बोलते हुए एक किलोमीटर तक विहार में साथ चले । ऐसे थे महा | उपकारी आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा, जिनकी महिमा सुर-नर सब गाते हैं ।
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प्रचारक, श्री स्था. जैन स्वाध्याय संघ
शाखा, बजरिया, सवामाधोपुर
बालक ठीक हुआ
• श्री पारसमल सुरेश कुमार कोठारी मैं सपरिवार अहमदाबाद में पूज्य गुरुदेव की सेवा में पहुँचा । उस समय हमारा करीब दो मास का लड़का भी साथ में ही था। इस बच्चे का स्वास्थ्य बहुत कमजोर चलता था। जब मैं मेरे गाँव रणसीगाँव से रवाना हुआ, उस समय पूरे परिवार ने बोला कि सिर्फ दो मास का छोटा बच्चा है, दूध भी पीता नहीं । बच्चे का स्वास्थ्य अहमदाबाद पहुँचने जैसा नहीं है। कहीं रास्ते में ही तकलीफ न हो जाय। वाकई में बच्चे की तबीयत बहुत ही | कमजोर चल रही थी। मैं हिम्मत कर सपत्नीक रवाना होकर पूज्य गुरुदेव के चरणों में अहमदाबाद पहुँचा ।
मैं और मेरी पत्नी गुरुदेव के श्री चरणों में वन्दना कर बैठ गये। धीरे-धीरे भीड़ कम देख कर गुरुदेव के श्री चरणों में कमजोर बच्चे को चरणस्पर्श कराकर सुला दिया ।
थोड़ी देर में गुरुदेव के प्रताप से बच्चे के पेट से लम्बा जानवर (छोटा सर्प जैसा) निकला। जानवर के