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सर्प बचाने की आँखों देखी घटना
. भंडारी श्री सरदारचन्द जैन विक्रम संवत् २०१५ अर्थात् ईस्वी सन् १९५८ का वर्षावास परम पूज्य गुरुदेव आचार्यप्रवर श्री १००८ श्री हस्तीमलजी म.सा, वयोवृद्ध स्वामीजी श्री अमरचंदजी म.सा, ज्येष्ठ एवं श्रेष्ठ शिष्य सेवाभावी श्री छोटे लक्ष्मीचंदजी म.सा, श्री माणकचंदजी म.सा, बाबाजी श्री जयंतीलालजी (जालमचंदजी) म.सा, नवदीक्षित मुनि श्री सुगनचंदजी म.सा. एवं श्रमण संघ के संत श्री हगामीलालजी म.सा, श्री रोशनलालजी म.सा, श्री प्रेमचंदजी म.सा. आदि ठाणा नौ का भारत की राजधानी महानगरी दिल्ली के सब्जीमंडी स्थानक में था। चातुर्मास सुसम्पन्न होने के पश्चात् जब मैंने सुना कि पूज्य गुरुदेव श्री का विहार दिल्ली से राजस्थान की ओर होने वाला है, मैं सेवा में दिल्ली पहुंचा और पूज्य गुरुदेवश्री के दिल्ली से अलवर तक विहार में, मैं पैदल साथ रहा और जब मेहरोली, गुड़गांव, बादशाहपुर आदि ग्राम-नगरों से विचरण करते हुए आगे बढ़ रहे थे, तब रास्ते में सुबह के समय एक गांव के लोग इकट्ठे होकर (गांव का नाम स्मरण में नहीं रहा), हाथों में बड़ी बड़ी लाठियाँ लेकर, एक मकान के कच्चे छप्पर से, एक बहुत बड़े कालिन्दर सर्प (नागराज) को गिराकर मारने लगे। उसी समय उस रास्ते से पूज्य गुरुदेव श्री और हम साथ ही आ रहे थे तो एकदम गुरुदेवश्री ने वहीं रुककर उन लोगों से कहा कि आप सांप को मारो नहीं, तब वे लोग कहने लगे कि मारे नहीं तो क्या करें, यह विषैला सांप हमको काट जायेगा-खा जायेगा, हम मर जायेंगे।
उसी वक्त गुरुदेवश्री ने फरमाया कि आप सब लोग दूर हो जावें, हम इसको पकड़कर सुरक्षित स्थान में दूर छोड़ देंगे। आप लोग निश्चिन्त हो जावें, घबरायें नहीं, चिन्ता न करें, डरें नहीं।
उस सांप को आचार्यप्रवर पूज्य गुरुदेवश्री ने ओघे पर लेकर, बहुत दूर एकान्त निर्जन स्थान में ले जाकर सुरक्षित छोड़ दिया। तब गांव के सभी लोग गुरुदेव भगवन्त की इस 'असीम शक्ति' 'आत्मबल' की बहुत बहुत प्रशंसा करने लगे।
इसके पूर्व तो कई लोगों से सिर्फ सुनने में ही आया था कि सातारा नगर महाराष्ट्र प्रांत में भी गुरुदेव भगवंत | ने एक नागराज को जीवन दान दिया, पर इस गांव में तो हमने प्रत्यक्ष आँखों से देखा, और हमारा अन्तर-मन गुनगुनाने लगाः
“फूल तो बहुत होते हैं, पर गुलाब जैसे नहीं। संत तो बहुत होते हैं, पर 'हस्ती' गुरुदेव जैसे नहीं ।।"
-त्रिपोलिया बाजार, जोधपुर-342002