________________
उच्च साधक एवं दयालु सन्त
श्री वस्तीमल चोरड़िया
(१) ज्ञान-दर्शन रूप स्वाध्याय और चारित्र रूप सामायिक - साधना के प्रबल प्रेरक आगम ज्ञाता इतिहास | | मार्तण्ड ध्यानयोगी परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर श्री हस्तीमलजी महाराज सा. कृष्ण पक्ष की हर दशमी को अखंड मौनव्रत की साधना करते । इसी प्रसंग में मुझे संवत् २०२१ आसोज कृष्णा दशमी की भोपालगढ़ चातुर्मास की एक अविस्मरणीय घटना याद आ रही है।
आचार्य श्री स्थानीय तालाब पर स्थित दादाबाड़ी में रात्रिवास व ध्यान-साधना के लिए पधारे। आचार्य श्री जब ध्यानरत थे, तब रात्रि के लगभग ८ बजे एक भक्त वहां पर आया । उसके हाथ में टार्च भी थी। वह उच्च स्वर
बोलते हुए आचार्यश्री जहां ध्यानरत थे, वहां पहुँचा और कर्कश स्वर में अनर्गल प्रलाप करने लगा । जाते-जाते यह चेतावनी भी दे गया कि कल से मुझे यहां नहीं मिलने चाहिए । आचार्यश्री अपने ध्यान में इतने तल्लीन थे कि | उन पर इस कटु वातावरण का कोई असर नहीं हुआ, निर्विघ्न रूप से रात्रि ध्यान करते रहे ।
I
आचार्य श्री के इस धैर्य व सागर के समान गंभीरता से वह कटु वातावरण भी मधुरिम ही रहा। गांव वालों | को दूसरे दिन जब इस घटना का पता चला आचार्यश्री से इस बारे में जानना चाहा, पर आचार्यश्री के चेहरे पर | कोई विपरीत भाव नजर नहीं आया। इस अविनीत भक्त के परिवार वालों ने आचार्यश्री से इस दुर्व्यवहार के लिए क्षमा भी मांगी पर आचार्यश्री तो सागरवर गंभीरा थे
1
(२) आचार्य भगवन्त बीजापुर से विहार कर बागलकोट पधार रहे थे। कोरनी ग्राम में नदी के बाहर सहज | | बनी एक साल में विराजमान थे । वहाँ देखा कि गांव में रूढ़िवादी लोगों की मान्यता थी कि नदी पर बकरे की बलि
से गांव में शान्ति रहती है । इस मनगढन्त मान्यता के कारण गांव की शान्ति के लिए बकरा उस दिन बलि चढ़ाया जाना था, जोरों से तैयारियां चल रही थी । आचार्य भगवन्त ने जब एक भक्त सुना तो सहज भाव से उस भक्त द्वारा गांव वालों को बुलवाया व अहिंसा का उपदेश दिया। लोगों को धर्म का मर्म समझाया। लोगों ने अहिंसा व धर्म के मर्म को समझा व उस दिन होने वाली बकरे की बलि हमेशा के लिए रुक गई।
(३) परम श्रद्धेय आचार्यप्रवर का भीलवाड़ा में इन्दौर चातुर्मास खुलने के बाद आचार्यश्री का विहार इन्दौर की तरफ होने लगा । आचार्यश्री के दर्शनार्थ व विहार में साथ रहने के कारण इन्दौर से मन्दसौर होकर कई बार आने-जाने का क्रम रहा । आचार्य श्री मन्दसौर करीब सुबह दस बजे पधारे। उस दिन एक श्रावक के परिवार का एक नन्हा बालक दूसरी मंजिल से करीब ८ बजे गिर पड़ा। बेहोशी की हालत में था तथा वहां के डाक्टरों ने इलाज के लिए मना कर दिया। बाहर बड़े हॉस्पिटल में भर्ती कराना पड़ेगा, इसी तरह का विचार चल रहा था, तब एक अन्य श्रद्धालु भक्त ने कहा – “मौनी, ध्यानी, संयम-साधना के पथिक आचार्य भगवन्त से मांगलिक तो सुनवा दो, जिनकी मांगलिक सम्मेलन में सभी बड़े संतों व आचार्यों ने अपनी अपनी दिशा में विहार करने के पहले सुनी थी । "
उस भक्त ने नन्हें बालक को आचार्य भगवन्त से मांगलिक सुनवाया। कुछ ही क्षणों में बालक ने आंखें खोली व होश में आने लगा, धीरे-धीरे यथावत् होने लगा। आचार्य भगवन्त १५ दिन विराजे । नंदीषेणजी म.सा. की दीक्षा का प्रसंग भी यहीं बना। उसी भक्त ने सारा संचालन किया । - १८३, मसूरिया, सेक्शन, ७ पत्रकार कॉलोनी, जोधपुर