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[ तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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डागा के अधिक अस्वस्थ हो जाने पर जयपुर ले जाकर संतोक बा दुर्लभजी अस्पताल में डा. अशोक जैन (हृदय रोग विशेषज्ञ) को दिखाया। उन्होंने यांत्रिक मशीनों से हृदय का निरीक्षण परीक्षण कर हृदय के दो वाल्व अवरुद्ध होना बताया, जिसकी पुष्टि मेरे भतीजे डा. चन्द्रशेखर डागा ने भी, यांत्रिक मशीनों से देख कर की। उपचार हेतु आपरेशन की सलाह दी गयी। उस समय जयपुर में, त्रिमूर्ति चौराहे पर पूज्य आचार्यप्रवर बिराज रहे थे। हम दोनों प्रथम उन्हीं के दर्शन करने गये। मेरा चेहरा देख आचार्य देव बोले- “आप सुस्त क्यों हो? क्या बात है?" मैंने धर्म सहायिका के हृदय के ऑपरेशन होने की बात कही। उन्होंने सारी बात ध्यान से सुनी और वे कुछ समय के लिये ध्यानस्थ हो गये। तदनन्तर बोले, चिन्ता की कोई बात नहीं है। मेरी धर्म सहायिका को कहा “फिक्र नहीं करना। सब ठीक होसी।" हम दोनों को निकट बुला, मंगल पाठ सुनाया और पुन: कहा चिंता नहीं करना सब ठीक होगा। हम आपरेशन की तैयारी करते हुए टोंक लौट आये। टोंक आकर मुख्य चिकित्साधिकारी टोंक के परामर्श से एक सामान्य गोली (एलट्रोक्सिन) भी देना प्रारम्भ किया। पन्द्रह दिन में स्वास्थ्य काफी ठीक हो गया, ऑपरेशन का विचार स्थगित कर दिया। कुछ ही दिनों में हृदय रोग जाता रहा। आज करीब तीस वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी पूर्ण स्वस्थ है, और घर के सारे कार्य सानन्द करती है। जीवन में एक चमत्कार हो गया। यह सब हम पूज्य गुरुदेव की महती कृपा का फल ही समझते हैं।
मेरी तुच्छ बुद्धि, गुणों के सागर, इस युग की महान् हस्ती, आचार्य हस्ती के गुणों को व्यक्त करने में एक अणु जितनी भी सक्षम प्रतीत नहीं होती है। फिर भी उस महापुरुष के महा उपकारों से उपकृत होने से इस अकिंचन की लेखनी, उनके गुण स्मरण हेतु प्रवृत्त हुई है।
डागा सदन, संघपुरा, टोंक (राज.)