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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं (३) सेठ मोतीलाल जी लोढ़ा मालेगांव (महाराष्ट्र) से जोधपुर आए हुए थे। आचार्य भगवन्त उस समय अजमेर विराजमान थे । दर्शन-वन्दन एवं मांगलिक - श्रवण की भावना 'वे जोधपुर से नई कार लेकर अजमेर पहुँचे । उनका विचार अजमेर कार द्वारा महाराष्ट्र जाने का था, अतः अपने कार्यों से निवृत्त हो वे मांगलिक श्रवण करने पूज्य आचार्य भगवन्त की सेवा में उपस्थित हुए। वन्दन - नमन एवं सुख-शांति पृच्छा कर लोढ़ा जी ने गुरुदेव से मांगलिक देने का निवेदन किया । ६१४ आचार्य भगवन्त ने पूछा- “अभी कौनसी गाड़ी है ? " श्री मोतीलाल जी लोढ़ा ने कहा- " बाबजी ! हम कार से जा रहे हैं।” “इतनी दूर और कार से ?" ज्ञानी गुरु के मनोभाव भक्त जल्दी समझता है । मन ही मन सोचा, यह ठीक नहीं है, इसलिये आचार्य | भगवन्त के मुंह से निकला 'इतनी दूर और कार से' । लोढ़ा जी ने अपना और अपने परिवार के सदस्यों का कार | जाना स्थगित कर ड्राइवर से कहा- “तुम कार लेकर जाओ, हम रेल से पहुंच रहे हैं।” मालिक की आज्ञानुसार ड्राइवर अजमेर से रवाना हुआ। कोई पन्द्रह किलोमीटर गाड़ी चली होगी कि | अकस्मात् कार के इंजन में आग लग गई। नई गाड़ी का इंजन जल-बल गया। कुछ समय बाद सेठजी को सूचना | मिली कि कार में अकस्मात् आग लग जाने से कार को नुकसान हुआ है और कार आगे बढ़ने की स्थिति में नही हैं। एक क्षण में उन्हें गुरुदेव के वे वचन ध्यान में आए 'इतनी दूर और कार से' । पूज्य आचार्य भगवन्त कितने दूरदर्शी थे, जिन्होंने संकेत मात्र से सावधान भी कर दिया और कहने में कहीं | दोष भी नहीं लगाया । धन्य है पूज्य गुरुदेव की दूरदर्शिता को । - दीवानों की हवेली, घासमण्डी, जोधपुर ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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