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________________ दूरदर्शी थे आचार्य भगवन्त • श्री अनराज बांथरा आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमलजी म.सा. मे अनेक गुण थे। उनकी दूरदर्शिता के तीन संस्मरण स्मृति - पटल पर आ रहे हैं । (१) आचार्यप्रवर पूज्य श्री नानालाल जी म.सा. ने अपने आज्ञानुवर्ती श्री प्रेम मुनि जी, श्री जितेश मुनि जी महाराज का वर्ष १९९० का चातुर्मास कोठारी भवन, सरदारपुरा, जोधपुर के लिए स्वीकृत किया था । आज्ञानुसार मुनिद्वय चातुर्मासार्थ सरदारपुरा पधारे। सरदारपुरा में उन्हें आचार्यप्रवर पूज्य श्री हस्तीमल जी म.सा. के न्यू पावर हाऊस के आसपास विराजने की जानकारी मिली तो मुनिद्वय दर्शन - वन्दन की भावना से न्यू पावर हाऊस रोड स्थित सुश्रावक श्री सम्पतराज जी बाफना की दाल मिल पधारे। विद्ववर्य श्री प्रेममुनि जी म.सा. ने दर्शन - वन्दन कर कहा कि गुरुदेव आचार्य श्री नानालाल जी म.सा. ने हमारा चातुर्मास कोठारी भवन, सरदारपुरा फरमाया है। आचार्यप्रवर पूज्य श्री हस्तीमल जी महाराज ने मुनि श्री की बात सुनकर सहज कहा - "ठीक है, आप पावटा क्षेत्र खुला रखना ।” मुनिद्वय कुछ समय सेवा का लाभ प्राप्त कर मांगलिक सुनकर विहार कर पुनः कोठारी भवन लौटना चाह रहे थे, तब पुनः आचार्य भगवन्त ने प्रेममुनि जी से कहा- “पावटा क्षेत्र का ध्यान रखना ।” मुनिद्वय मांगलिक लेकर अपने स्थान लौट आए। जोधपुर उनके लिए नया क्षेत्र था। उन्होंने पावटा किधर है, श्रावकों से पूछा और मन ही मन चिन्तन करने लगे कि आचार्यप्रवर पूज्य श्री हस्तीमल जी महाराज ने पावटा क्षेत्र खुला रखने की बात क्यों फरमाई है ? रात में एकाएक तेज वर्षा से कोठारी भवन के प्रायः सभी कमरों में पानी भर गया। सवेरा हुआ। देखा हर कमरे में पानी है। इस स्थान पर रहकर चातुर्मास सम्भव नहीं लगा। अभी चातुर्मासिक पक्खी में समय है, विचार कर मुनिद्वय श्री उगमराज जी मेहता के साथ पावटा क्षेत्र देखने आये । पावटा में धर्मनारायण जी के हत्थे में वर्द्धमान | भवन खाली है, श्रावकों के आग्रह पर मुनिद्वय ने स्थान की उपयोगिता समझकर कोठारी भवन, सरदारपुरा के बजाय वर्द्धमान भवन, पावटा में चातुर्मास किया । श्रद्धेय श्री प्रेममुनि जी म.सा. ने पावटा में प्रवचन सभा में आचार्य भगवन्त पूज्य श्री हस्तीमल जी महाराज की दूरदर्शिता बताते हुए कहा कि उस दिव्य-दिवाकर ने हमें समय पूर्व सावधान कर संयम - साधना के निर्वहन में सम्बल दिया है, वह सदा स्मृति - पटल पर रहेगा । (२) श्रद्धेय श्री प्रेममुनि म.सा. ने दीक्षा पूर्व के प्रसंग को लेकर फरमाया कि आचार्य भगवन्त भोपाल पधारे तब पांच छः भक्त उनके विहार में जा रहे थे, मैं भी उन लोगों के साथ हो गया। सभी श्रावकों ने आचार्य भगवन्त को वन्दन - नमन किया, मुझे देखकर आचार्य भगवन्त के मुखारविन्द से सहसा निकला कि तूं यदि दीक्षा ले उसके कुछ वर्षों तो जिनशासन की अच्छी प्रभावना होगी। उस समय मैंने दीक्षा का कभी सोचा भी न था, परन्तु बाद मेरी भावना बनी और मैं आचार्य श्री नानेश के चरणों में दीक्षित हुआ । आचार्य भगवन्त कितने दूरदर्शी साधक थे, जिन्होंने न तो मेरी कुण्डली देखी, न हाथ; लेकिन अपनी अनुभूति से जो फरमाया, आज वह सार्थक लग रहा है।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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