________________
जिनके पावन दर्शन से पापों के पर्वत हिलते थे
• श्री ब्रजमाहन जैन (मीणा) महान् श्रुतधर आचार्य हेमचन्द्र सूरि ने गुर्जर नरेश कुमारपाल को शासन में जोड़ कर जिनधर्म का उद्योत किया। महान् तपस्वी श्री हीर विजय सूरि ने भारत सम्राट अकबर का हृदय परिवर्तन कर उन्हें अहिंसक बनाया। महान् आचार्य शिव मुनि विष्णु कुमार आदि तप: पूत तपस्वियों ने दुष्ट राजाओं की यातनाओं से संघ को मुक्त कराया, जिसका इतिहास साक्षी है। स्वर्णभूमि के महान् प्रभावक आचार्य कालक ने महाराज गर्दभिल्ल द्वारा अचानक किए अनाचार का विरोध कर गर्दभिल्ल को युद्ध में परास्त कर साध्वी सरस्वती को उनसे मुक्त कराया एवं जैन शासन की यशोगाथाएँ दिग् दिगन्त में फैलाई।।
उसी श्रुत परम्परा के तप:पूत हमारे आराध्य आचार्य देव ने शासनसेवा में जो किया, उसके आद्योपान्त वर्णन में बुद्धि की अल्पता ही बाधक है। जिन शासन के प्रबल हितैषी ज्योतिर्धर आचार्यश्री की गुण गाथा को एक कवि ने इस प्रकार व्यक्त किया है।
धन्य जीवन है तुम्हारा, दीप बनकर तुम जले हो। विश्व का तम तोम हरने, ज्यों शमा की तुम ढले हो। अम्बर का सितारा कहूँ या धरती का रतन प्यारा कहूँ।
त्याग का नजारा कहूँ या डूबतों का सहारा कहूँ। गुरुदेव आचार्य श्री हस्तीमलजी म.सा. श्रेष्ठ श्रमण थे और उभय लोक हितकारी श्रमण -जीवन के साथ उत्कृष्ट | तप एवं ध्यान योग के उपासक, साधक एवं मौनाभ्यासी थे।
आपने आचार्य -काल में जैन संघ की उन्नति का शंखनाद किया। सर्वप्रथम आपने धर्मप्रिय श्रावकों में ज्ञान का अभाव देखा और उपाय सोचा । फलस्वरूप स्वामीजी श्री पन्नालालजी म.सा. के सहयोग से स्वाध्याय संघ की स्थापना की नींव रखी गई। फिर पर्वाधिराज पर्युषण में धर्माराधना से वे क्षेत्र भी लाभान्वित होने लगे जहाँ संत-सती नहीं पहुंच पाते हैं। समाज में ज्ञान का सम्बल मिलता रहे, एतदर्थ चिन्तन दिया। इस प्रकार 'जिनवाणी' पत्रिका का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ।
विद्वानों को एक मंच पर लाने के लिये विद्वत् परिषद् की स्थापना एवं नये विद्वान तैयार करने के लिये जैन सिद्धान्त शिक्षण संस्थान का शुभारंभ भी आपके सच्चिन्तन के फल रहे हैं।
आपको जैन इतिहास की कमी सदैव खटकती थी। अनेक ज्ञान भंडारों का अवलोकन कर विपुल ऐतिहासिक साहित्य सामग्री का सर्जन किया एवं जैन धर्म का मौलिक इतिहास जो चार भागों में विभक्त है, की रचना की। इतिहास के ये भाग समाज की अमूल्य निधि हैं।
सरस्वती पुत्र, क्रियोद्धार परम्परा के रत्न, ज्ञान शिखर, धीर वीर गंभीर, परोपकारी सन्त, साधना के सुमेरु, कठोर साधना योगी, जैन जगत के देदीप्यमान नक्षत्र, तात्त्विक व सात्त्विक , निर्भीक और निस्पृही, पर-दुःख में नवनीत सी कोमलता, परन्तु व्रत-पालन में चट्टान सम कठोरता, सौम्य और गंभीर श्रमण संस्कृति के गौरव, परम शान्त आत्मा, दूरदर्शी , भक्त वत्सल, स्वप्न द्रष्टा आचार्य श्री की यशोगाथाओं को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता। आप को