SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 666
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६०० ___ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं श्री उम्मेदनाथ जी भंडारी, मेड़ता नगरपालिका के चुनाव में विजयी हुए और अध्यक्ष पद के लिए प्रयास करने लगे। उस समय दो महिला प्रत्याशियों का मनोनयन सरकार की ओर से होता था, अत: श्री भंडारी जी अपने पक्ष ! की दो महिला प्रत्याशियों के नाम लाने के लिए मेड़ता से जयपुर रवाना हुए। बस में उनकी मुलाकात जोधपुर के || एक सज्जन से हुई जो किशनगढ़ गुरुदेव के दर्शनार्थ जा रहे थे। उन्होंने श्री भंडारी जी से आग्रह किया कि आप भी गुरुदेव के दर्शन करके जयपुर निकल जाना, श्री भंडारी जी ने उनका आग्रह स्वीकार किया और किशनगढ़ उतर । गये। गुरुदेव को वंदना करने के पश्चात् उक्त सज्जन ने भंडारी जी का परिचय करवाकर उनके जयपुर जाने का । प्रयोजन भी बतलाया। तब गुरुदेव के श्री मुख से सहज में उच्चरित हुआ-"तेरा काम तो हो गया।" श्री भंडारी जी को जयपुर पहुंचने पर बहुत ही आश्चर्य हुआ, क्योंकि जिन दो महिलाओं के नाम वे पार्षद के लिये लाने जा रहे थे उनका मनोनयन तो श्री भंडारीजी के पक्ष में पहले से ही हो चुका था। __ श्री भंडारी जी हमेशा के लिये गुरुदेव के भक्त बन गये। • नवो जुनो मत करीजै श्री पारसमल जी सा. सुराणा नागौर वाले गुरुदेव के दर्शनार्थ जोधपुर पधारे हुए थे। अचानक घर से तार आया कि माँ बीमार है, जल्दी आओ। तार पढ़कर सुराणा सा बैचेन हो गये व आचार्य श्री की सेवा में मांगलिक | लेने उपस्थित हुए और सारा वृत्तांत गुरुदेव को बताया। गुरुदेव श्री ने सारी बात सुनकर मुस्कराते हुए मांगलिक फरमा दी और जाते जाते कहा कि कोई नवो जुनो मत करीजै। रास्ते भर पारसमल जी इसी उधेड़बुन में लगे रहे कि “कोई नवो जुनो मत करीजै” का क्या तात्पर्य हो सकता है? कुछ समझ में नहीं आया। घर आकर देखा तो माँ तो स्वस्थ , किन्तु पत्नी अस्वस्थ थी। स्मरण रहे कि पुराने समय में पत्नी के बीमार होने पर बेटे को बुलाना होता तो पत्नी की बीमारी नहीं लिखकर मां की बीमारी लिखी जाती थी। - - श्री पारसमलजी ने पत्नी की सार संभाल की और दो चार दिन बाद ही पत्नी का देहांत हो गया। शोक बैठक का आयोजन किया गया। आठवें नवें दिन ही बीकानेर से कोई सज्जन अपनी लड़की का रिश्ता लेकर आया तब उन्हें आचार्यश्री द्वारा कही बात का गूढार्थ समझ में आया। उन्होंने मन ही मन आजीवन ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने का निर्णय ले लिया। • रूहानी बोल जाति ना पूछिये संत की, पूछ लीजिये ज्ञान । मोल करो तलवार का, पड़ी रहन दो म्यान ।। किसी कवि का यह दोहा एकदम सत्य है । वि.संवत् २०२७ के मेड़ता चातुर्मास में प्रतिदिन गुरुदेव के | श्रीमुख से प्रवचनों की अमृत वृष्टि हो रही थी। श्रोताओं से सभागार खचाखच भर जाता था। मुस्लिम बंधु नसार भाई और कारी साहब प्रवचन में आने से एक दिन भी नहीं चूकते। . ___ एक दिन कारी साहब गुरुदेव की अलौकिक वाणी से इतने भाव विभोर हो गये कि गश खाकर (बेहोश
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy