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तृतीय खण्ड : व्यक्तित्व खण्ड
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चमत्कार तो आपके जीवन का नगण्य रूप था। यह तो साधक के जीवन में स्वत: घटित होता है। आपके अन्तर्हदय में प्रभु-भक्ति के तेज का एक ऐसा अद्भुत परिमण्डल बन चुका था, जिससे प्रत्येक व्यक्ति पूज्य गुरुदेव से, उनके मुखमण्डल से, उनकी वाणी से प्रभावित हो उठता था।
ब्यावर में एक बार पूज्य गुरुदेव जब शंकरलालजी मुणोत की बगीची में विराज रहे थे तब आप श्री के भीतर प्रभु-भक्ति का ऐसा भावावेग उमड़ा कि वह शरीर की समस्त रोमराजि से फूट-फूट कर निकलना चाह रहा था। साधक की जब ऐसी स्थिति होती है तब वह साधक के शरीर की सीमाओं को लांघ जाती है। क्वचित् कदाचित् जिसकी प्रतिक्रिया में शरीर का भी तापमान बढ़ जाता है और ऐसा ही वहाँ हुआ।
पूज्य गुरुदेव को मैंने बाल्यकाल से देखा तब से ही साधना की उत्कृष्ट स्थिति में पाया। प्रथम बार जब गुरुदेव के दर्शन हुए तब गुरुदेव योग का आसन लगाये हुये प्रभु में तल्लीन थे। मेरे भावुक मन पर प्रथम दृष्ट्या जो प्रभाव पड़ा वह आज भी चिर स्थायी है। फिर तो मजीठ के रंग की तरह पूज्य गुरुदेव का स्नेह, प्रेम, वात्सल्य इतनी प्रचुर मात्रा में मिला कि मेरा जीवन धन्य हो उठा। पूज्य गुरुदेव की प्रभु-भक्ति का वर्णन नहीं किया जा सकता। मेरे पास भाव हैं, पर भाषा नहीं।
पूज्य गुरुदेव अतुलित शक्ति के भण्डार थे। अनन्त वैभव के प्रतीक थे। वे आखिरी अवस्था में अनन्त के साथ लौ लगाकर अन्तर्ध्यान हो गये। __ पूज्य गुरुदेव की अनन्त शक्ति युक्त आत्मा को मेरे अनन्त वन्दन । भय भंजनहारी गुरुवर
मेड़ता शहर में श्रीमालों के मौहल्ले में एक प्राचीन उपाश्रय है। इस उपाश्रय की अनोखी विशेषता यह है कि यहाँ पर अधिष्ठायक देव मणिभद्रजी की चमत्कारिक प्रतिमा विराजमान है। वि.सं. २००८ में पूज्यप्रवर हस्तीमल जी म.सा. का चातुर्मास इसी उपाश्रय में हुआ। इस चातुर्मास से मेड़ता के समग्र जैन समाज में एक नवीन चेतना का | प्रादुर्भाव हुआ।
इस चातुर्मास की एक घटना मेरे ही नहीं अपितु मेड़ता के सभी वरिष्ठ श्रावकों के मस्तिष्क पटल पर आज तक जीवंत है। संवत्सरी का दिन था, गुरुदेव की मंगलमयी प्रेरणा से लगभग ३०० श्रावकों ने पौषध व्रत किये। रात्रि में जब सारे श्रावक सो चुके थे, तब मैं और श्रीउदयराज सा. सुराणा ज्ञानचर्चारत थे। रात्रि के ठीक बारह बजे मणिभद्र जी का उपद्रव हुआ। अचानक उपासरे की जमीन हिलने लगी। एक साथ सभी लोगों के मुख से चीत्कार निकली, हड़कम्प मच गया, लोग इधर-उधर भागने लगे। कुछ लोग नीचे चौक में एकत्रित हो गये। इस समय आचार्यप्रवर ध्यान-मग्न थे। हो हल्ला सुनकर गुरुदेव नीचे पधारे और भयभीत लोगों को शान्त किया। मांगलिक |
. श्रवण करते ही शान्ति हो गई। श्रावकों की भय-बाधा दूर हो गई सभी को लगा कि विघ्न टल गया है। • वचनसिद्धि
__ महापुरुषों के मुख से सहजता में उच्चरित बातें भी भविष्य में अक्षरश: सत्य होती हैं। महापुरुषों के इस गुण को वचनसिद्धि कहते हैं। ऐसे कई प्रसंगों का दर्शन लाभ मुझे मिला जो गुरुदेव की वचनसिद्धता के पुष्ट प्रमाण हैं। एक प्रसंग का उल्लेख कर रहा हूँ।