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________________ (५३२ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं करते । बाल भक्त संस्कारवान बन कर ज्ञानाभ्यासी बनें, इस हेतु आप बच्चों को प्रेरणा प्रदान करते । मुझे भी उनके कृपा प्रसाद से चरणों में बैठने व ज्ञानाभ्यास करने का अवसर प्राप्त हुआ। संवत् २०२१ के भोपालगढ वर्षावास में एक दिन गुरुदेव ने हम बालकों (मुझे, भाई प्रसन्न चन्दजी, श्री नेमीचन्दजी कर्णावट व भाई श्री जम्बू कुमार) को प्रेरित करते हुए एक दिन में आचार्य अमितगति कृत “सत्त्वेषु मैत्री_"प्रभृति ग्यारह श्लोक कंठस्थ करने का लक्ष्य प्रदान किया। गुरुकृपा से हम चारों ने ही उसी दिन में ग्यारह श्लोक कंठस्थ कर लिये। यह थी गुरुदेव की ज्ञानदान की उत्कट भावना। इसी चातुर्मास में पूज्यवर्य ने महती कृपा कर हमें स्वयं कर्मप्रकृति का थोकड़ा व महावीराष्टक सिखाया। जोधपुर चातुर्मास में कोठारी भवन में आपने अपनी कृपा का प्रसाद प्रदान करते हुये मुझे एवं भाई | प्रसन्नचन्दजी को तत्त्वार्थसूत्र का अध्ययन कराया। कॉलेज में पढ़ते हुए हमारे मित्रगण ने गजेन्द्र स्वाध्याय मित्र मंडल का गठन किया एवं हम १५ मित्र प्रति रविवार मुथाजी का मंदिर, नागौरी गेट, जोधपुर में सामूहिक सामायिक करते हुए सामायिक के पाठ, अर्थ व भावार्थ का स्वाध्याय करते । श्रद्धेय श्री महेन्द्र मुनिजी म.सा. उस समय संसारावस्था | में थे व हमारे मित्र-मण्डल में सम्मिलित थे। वहाँ हुई चर्चा के आधार पर जब मैंने सामायिक सूत्र पर एक पुस्तक लिखी तो कृपानिधान ने उसका पूर्ण अवलोकन कर इस बालभक्त को प्रोत्साहित किया। (४) सन् १९७० में आपका चातुर्मास मेड़ता सिटी में था। मैं बी. काम. (अन्तिम वर्ष) का छात्र था। आपके दर्शनार्थ मेड़ता गया। रात्रि में श्री चरणों में बैठा था, आगे समर्पित कर्मठ समाजसेवी सुश्रावक श्री जंवरीमल जी ओस्तवाल प्रभृति मेड़ता के कार्यकर्ता बैठे थे। आपकी दीक्षा स्वर्ण-जयन्ती बाबत चर्चा चलने पर आपने फरमाया-"आप हमें संत समझते हैं, तो त्याग प्रत्याख्यान व्रत की भेंट दें, यही संयम व संयमियों का सच्चा सम्मान है। अन्यथा संतों के साधक जीवन के प्रसंगों में मान-सम्मान, अभिनन्दन जैसे कार्यक्रमों को हम कतई उचित नहीं समझते हैं व ऐसे किसी आयोजन के प्रसंग पर उपस्थित रहने की हमारी कतई भावना नहीं है।” गुरुदेव के श्रीमुख से ही सुना एक श्लोक याद आ रहा है - ____ “ध्यान धूपं मन: पुष्पं पंचेन्द्रिय हुताशनं । क्षमा जाप संतोष पूजा पूजो देव निरंजनं ।।" जंवरीमल सा. बोल पड़े–“बापजी आडी-टेढी बातां क्यूं करो, मना करनी हो, तो स्पष्ट मना कर देवो।" उन्होंने |अन्य संतों के जीवन-प्रसंगों के आयोजन का हवाला भी दिया। अकस्मात् मेरे मुख से निकल पड़ा -" आप ऐसा कैसे कहते हैं, महापुरुष के मुख से जो बात निकली है, वह | तो होगी ही। देखना यह है कि यह श्रेय किसे मिलता है?" अपनी बात का प्रतीकार देख कर उन्होंने पीछे मुड़कर | देखा कि यहाँ मेरी बात काटने वाला कौन है ? पूज्य देव ने फरमाया - “यह जोगीदास जी का पोता है।" ___कहना न होगा आपकी भावना के अनुरूप साधना कार्यक्रम हाथ में लिया गया व आपके साधनातिशय, पुण्य | प्रताप व उत्साही कार्यकर्तागण श्री रामसिंह जी हूंडा हीरादेसर, श्री मदनराज सिंघवी, जोधपुर, श्री संपतराज सा बाफना व श्री पारसमल सा बाफना भोपालगढ़ आदि के उत्साहपूर्ण योगदान व भक्त समुदाय द्वारा अपने महनीय गुरुवर्य की भक्ति में व्रत भेंट करने की प्रबल भावना से लक्ष्य से कई गुना व्रत-प्रत्याख्यान हुए। मैं इस आयोजन में समारोह समिति के महामंत्री के नाते यत्किंचित संघ-सेवा कर पाया, यह सब उन्हीं महामनीषी की कृपा का ही तो प्रसाद है।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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