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श्रद्धा के कल्पवृक्ष थे आचार्य श्री
• न्यायाधिपति श्री श्रीकृष्णमल लोढ़ा पूज्य आचार्य श्री हस्तीमल जी महाराज साहब करीब चार दशक पहले घोड़ों के चौक, जोधपुर के स्थानक में विराज रहे थे। उस समय मुझे आदेश दिया कि तुमको पच्चीस बोल कंठस्थ कर सुनाना है। ‘पच्चीस बोल का थोकड़ा' पुस्तक से मैं हर रोज एक-दो बोल याद कर सुनाने लगा तथा प्रश्नों का उत्तर भी देना शुरू हुआ। यह क्रम चलता रहा। आचार्य श्री का आदेश था, पालन करना ही था। पच्चीस बोल कंठस्थ किये। अब तो उनमें से थोड़े ही याद हैं। ऐसा याद पड़ता है कि आचार्य श्री ने उस समय जीव के दो भेद बताए–संसारी और सिद्ध । मुझे यह समझाया कि जो कर्म सहित हैं, वे संसारी जीव हैं और ज्ञानावरणीय आदि आठ कर्म रहित हैं, वे सिद्ध जीव हैं । पाप के अठारह भेद तो मुझे शीघ्र ही याद हो गये। संक्षेप में बताया कि जो प्राणी को मैला करे, उसे पाप कहते हैं। आश्रव, संवर, निर्जरा के भेद उदाहरणों द्वारा विस्तृत रूप से समझाए। श्रावक के बारह व्रतों को अंगीकार कर मर्यादा में चलने का आदेश दिया।
बहुत वर्षों पहले जोधपुर शहर में स्थित आहोर की हवेली में आचार्य श्री अपनी संत-मंडली के साथ विराज रहे थे। उस समय आचार्य श्री गहन अध्ययन में लगे हुए थे। मैं विद्यार्थी था। प्रातः प्रवचन सुनने जाता था। व्याख्यान मधुर शैली में होता था। शास्त्रों का प्रवचन होता था। मेरे मन में कई शंकाएँ जाग्रत हुईं। प्रश्न पूछना चाहता था, प्रश्नों का समाधान चाहता था। लेकिन फिर संकोचवश सोचता कि मेरे प्रश्नों से कहीं गुरुदेव नाराज तो नहीं हो जायेंगे। साहस कर मैंने पूछा कि आप केवल महामंत्र नवकार की आराधना का ही उपदेश क्यों देते हैं, अन्य मंत्र-तंत्र का उपदेश नहीं देते । आचार्य श्री ने फरमाया कि परमेष्ठी भगवन्तों का अधिष्ठान नवकार महामंत्र है। इसमें अरिहन्त के गुण, सिद्ध के गुण, आचार्य के गुण व साधु के गुणों का कथन है। योग्यता के कारण व्यक्ति का महत्त्व है। अरिहन्त, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और साधु, ये पांचों गुणपुञ्ज हैं। जिस व्यक्ति में इनके गुण दिखाई दें, उसकी शरण में जाने से मुक्ति प्राप्त होती है। आचार्य श्री ने फरमाया कि देव, गुरु और धर्म के प्रति प्रकृष्ट निष्ठा प्रकट करने हेतु नवकार महामंत्र में विश्वास किया जाता है। आचार्य श्री के दर्शन हेतु जो भी आता था उसको महामंत्र नवकार का प्रतिदिन अधिक से अधिक जाप करने का फरमाते और महामंत्र की महत्ता पर प्रकाश डालते।
चमत्कारी मंगलपाठ का उल्लेख करना चन्द पंक्तियों में सम्भव नहीं है। ऐसे कई प्रसंग हैं कि आचार्य श्री के मंगल पाठ से मेरा हित हुआ, चिन्ताएं दूर हुईं और मानसिक शान्ति मिली। ____ आचार्य श्री के सान्निध्य के प्रत्येक क्षण मेरी स्मृति में सजीव हैं। आचार्य श्री की सरलता, गुणग्राही दृष्टि, व्यापक चिन्तन एवं गहन अध्ययन की अनूठी छाप आपके दर्शन तथा सम्पर्क से सहज ही मेरे पर पड़ी। मेरे अज्ञानान्धकार को दूर कर आप श्री ने ज्ञान का प्रकाश दिया।
मेरे स्वयं के जीवन की कई घटनाएं हैं, जिनका विस्तृत उल्लेख करना संभव नहीं है। प्रसंग तो कई ऐसे हैं| कि आप श्री की आज्ञा व आदेशों की पालना से मेरा हित हुआ। मैं अपनी स्मृतियों के पिछले पृष्ठ खोल कर पढ़ने का प्रयास करता हूँ तो श्रद्धा का सागर उमड़ता है। मेरे जीवन की कुछ घटनाएं जो आचार्य श्री ने भविष्य द्रष्टा होने से संकेत की उनका विवरण दे रहा हूँ।