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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ५२२
भविष्य द्रष्टा-करीब ३४ वर्ष पहले जब आचार्य श्री घोडों के चौक में विराज रहे थे, मैं बाहर भ्रमण हेतु जाने का कार्यक्रम बना कर धर्मपत्नी के साथ दर्शन करने व मांगलिक श्रवण करने पहुँचा । आचार्य श्री के मुख से सहज ही निकला-अभी संत यहां विराज रहे हैं, संघ का कार्य एवं धार्मिक अध्ययन करो। मैं असमंजस में पड़ गया। यात्रा का कार्यक्रम पूरा बन चुका था। पुन: निवेदन करने पर आचार्य श्री ने संघ-सेवा और धार्मिक अध्ययन करने की बात दोहराई । मैंने जोधपुर से बाहर जाना स्थगित कर दिया। घटनाक्रम इस प्रकार घटित हुआ कि मेरा द्वितीय पुत्र पढ़ाई में बहुत होशियार था। परीक्षा में ऊँचा स्थान प्राप्त करने वाला था, किन्तु वह इस बार प्रेक्टिकल के कारण असफल | रहा। यह सूचना दूसरे दिन परीक्षा फल आने पर ज्ञात हुई । वह निराश हो गया, मानसिक संतुलन भी बिगड़ने लगा। ऐसे में मेरे अलावा उसको सान्त्वना देने व धैर्य बंधाने वाला परिवार का दूसरा कोई सदस्य नहीं था। उस समय अनर्थ होने की संभावना बन गई थी। आचार्य श्री की आज्ञा का पालन कर जोधपुर के बाहर जाने की यात्रा स्थगित करना उचित रहा । मुझे लगा, परिवार पर आसन्न संकट टल गया। वे दिव्य ज्ञानी थे और भावी के द्रष्टा थे।
श्रद्धा के कल्पवृक्ष -करीब २४ वर्ष पूर्व आचार्य श्री संतों के साथ पावटा में मेरे बंगले में विराज रहे थे। मेरी व मेरी धर्मपत्नी की आचार्य श्री के प्रति पूर्ण निष्ठा थी, फिर भी मेरी धर्मपत्नी मंगलवार को हनुमानजी का एवं शुक्रवार को संतोषी माता का एकाशन करती थी। एक दिन रामदेव जी का और पूर्णिमा को सत्यनारायण जी का व्रत करती थी। हम दोनों आचार्य श्री के दर्शन हेतु ऊपर के कमरे में गये। मेरे मुँह से निकल गया ‘सद्धा परम दुल्लहा।' आचार्य श्री ने पूछा, क्या बात है? तो मैंने आचार्य श्री को अपनी धर्मपत्नी का अन्य देवी-देवताओं में विश्वास होने की बात कही। आचार्य श्री ने फरमाया- "बाई तुम्हारे किस बात की कमी है? सब आनन्द है। दुनियाभर के असंख्य देवी देवता ही नहीं, वरन् देवेन्द्र भी जिनके चरणों में झुक कर अपने आपको सौभाग्यशाली समझते हैं, उनके भक्त होकर भी सांसारिक देवी देवताओं की उपासना करने का क्या लक्ष्य ? एकाशन ही करना है तो जैनों का एकाशना करो। जिससे कर्म निर्जरा होने से सहज ही आनन्द और समाधान मिलेगा।” उसके पश्चात् मेरी धर्मपत्नी ने मंगलवार, शुक्रवार आदि के एकाशन बन्द कर दिये। कुछ ही समय पश्चात् हमारी चिन्ता अनुकूल समाधान भी पा गई।
वचन सिद्धि-राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद से मैं सेवानिवृत्त होने के पश्चात् अपनी धर्मपत्नी के साथ आचार्य श्री के दर्शन हेतु अजमेर गया। मैं विक्रम संवत् व मारवाड़ सम्वत् भिन्न भिन्न होने से ६२ की बजाय ६१ वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्त हो गया था। आचार्य श्री को मैंने सेवानिवृत्त हो जाने का निवेदन किया। आचार्य श्री ने फरमाया-“अभी सेवानिवृत्त होने का समय नहीं आया है।” मैं तो सेवानिवृत्त हो चुका था, पर क्या कहता। किन्तु गुरुदेव के वचनों में सिद्धि थी। सेवानिवृत्तिके बाद मुझे एक बड़े विवाद को निपटाने के लिये पंच नियुक्त किया गया। आर्थिक दृष्टि से यह कार्य उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से भी अच्छा था। इसके पश्चात् मैंने राष्ट्रीय कानून के तहत गठित सलाहकार मण्डल के सदस्य का कार्य सात वर्ष तक किया। सन् १९८८ में पाँच साल के लिये मुझे अध्यक्ष, राज्य आयोग उपभोक्ता संरक्षण राजस्थान नियुक्त किया गया। आचार्य श्री की वचनसिद्धि प्रत्यक्ष हुई और वाणी सत्य प्रतीत हुई। • निर्भय एवं प्रभावी साधक __सूर्यनगरी जोधपुर शहर की पुरानी आबादी में सवाईसिंह जी की पोल (सिंहपोल) पोकरण के पूर्व जागीरदार श्री सवाईसिंह जी की थी, जिसको विक्रम संवत् १९७२ दिनांक १७.१०.१९१५ को पूज्य श्री श्रीलाल जी म.सा, पूज्य