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________________ ३७० नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं दूर होता है और आवरण दूर होने से क्षय अथवा उपशम या क्षयोपशम होकर मानव अपने आत्म-गुणों का विकास साध लेता है। काल का सदुपयोग अविकल रूप से चलने वाला काल यदि हाथ से निकल गया और बाद में सावधान बने तो फिर तुम्हारे वश की कोई बात नहीं रहेगी। क्योंकि काल तुम से बंधा नहीं है, बल्कि तुम काल से बंधे हो। आपको स्वयं काल के साथ चलना है। काल आपके साथ की अपेक्षा कभी नहीं करेगा। बिना किसी के साथ की अपेक्षा किये वह तो अपनी गति से अविकल रूपेण चलता ही रहेगा। यदि आप सजग एवं अप्रमत्त नहीं रहे और निरन्तर प्रवाही काल आपके हाथ से निकल गया तो अवसर चूक जाने के कारण आपको अन्त में हाथ मल-मलकर पछताना पड़ेगा। • समय चाहे थोड़ा ही क्यों न हो, पर यदि उसका उपयोग करना आ जाये तो थोड़े समय में भी साधक उसे अपने लिए लाभदायक बना अपने लक्ष्य की प्राप्ति में सफल हो सकता है। धर्म की साधना में पल-पल, क्षण-क्षण तक के समय का सदुपयोग करने वाले जागरूक साधक के सम्बंध में सूत्रकार ने कहा है जा जा वच्चइ रयणी, न सा पडिणियट्टइ। धम्मं च कुणमाणस्स, सफला जंति राइओ।। अर्थात् बीती हुई रात्रियाँ फिर नहीं लौटतीं । अहर्निश धर्म की साधना में निरत रहने वाले व्यक्ति की रात्रियाँ ही वस्तुतः सफल होती हैं। • काल प्रतिपल प्रवाही है। प्रतिपल, प्रतिक्षण, प्रतिदिन काल आगे सरकता जा रहा है और आप पीछे सरकते जा रहे हैं। कल आपकी जिन्दगी के जितने दिन थे, उनमें से आज आपकी जिन्दगी का एक दिन कट गया। जीवन का समय सीमित एवं स्वल्पातिस्वल्प है और जो स्वल्पतम सीमित समय है, उसका भी भावी प्रत्येक क्षण अनिश्चित है। किसी को कोई पता नहीं है कि कराल काल कब आकर उसे अपना कवल बना लेगा। संसार की चौरासी लाख जीव-योनियों में केवल एक मानव-योनि ही ऐसी योनि है, जिसमें काल का अधिकाधिक सदुपयोग कर साधक साधना द्वारा यथेप्सित आत्मकल्याण कर सकता है। जो उद्बुद्ध साधक मानव-जीवन एवं काल के इस महत्त्व को जानता है, वह अपने जीवन के एक-एक श्वासोच्छ्वास एवं काल के एक-एक क्षण को अनमोल समझ कर आत्म-कल्याण की साधना में संलग्न रहता है। वह अपने चरम लक्ष्य के सन्निकट शीघ्र ही पहुँच सकता है। क्रोधनिग्रह • मेरे सामने राजस्थान का रहने वाला दर्जी-समाज का एक आदमी आया और कहने लगा कि मुझे गुस्सा बहुत चढ़ता है, मैं क्या करूँ ? मैंने कहा-जब गुस्सा चढ़े तब उस स्थान से थोड़ी देर के लिये अलग हट जाओ। इसके बाद भी गुस्सा शान्त नहीं होता है तो १० मिनट तक किसी से बोलो मत । इससे भी शान्त नहीं होता है तो गुस्सा आने पर प्रायश्चित्त में नमक, मिर्ची खाना छोड़ दो। इसको वश में करने के लिये कड़ा अनुशासन | रखना चाहिये।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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