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________________ द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड गर्भपात सन्ततिनिग्रह और परिवार नियोजन के नाम से सरकार प्रबल आन्दोलन कर रही है और कैम्पों आदि का आयोजन कर रही है । यह सब बढ़ती हुई जनसंख्या को रोकने के लिये किया जा रहा है। गांधीजी के सामने जब यह समस्या उपस्थित हुई तो उन्होंने कृत्रिम उपायों को अपनाने का विरोध किया था और संयम के पालन पर जोर दिया था। उनकी दूरगामी दृष्टि ने समझ लिया था कि कृत्रिम उपायों से भले ही कुछ तात्कालिक लाभ हो जाय, परन्तु भविष्य में इसके परिणाम अत्यन्त विनाशकारी होंगे। इससे दुराचार एवं असंयम को बढ़ावा मिलेगा । सदाचार की भावना एवं संयम रखने की वृत्ति समाप्त हो जायेगी । I • कितने दुःख की बात है कि जिस देश में भ्रूणहत्या या गर्भपात को घोरतम पाप माना जाता था, उसी देश में आज गर्भपात को वैध रूप देने के प्रयत्न हो रहे हैं। इसी से अनुमान लगाया जा सकता है कि अहिंसा की हिमायत करता हुआ भी यह देश किस प्रकार घोर हिंसा की ओर बढ़ता जा रहा है। देश की संस्कृति और सभ्यता का निर्दयता के साथ हनन करना वस्तुत: जघन्य अपराध है । (यह प्रवचनांश उस समय का है जब गर्भपात को वैध रूप नहीं दिया गया था । ) ■ गुण दृष्टि संसार में अन्तर्दृष्टि जनों की अपेक्षा बहिर्दृष्टि लोगों की बहुलता है । बहिर्दृष्टि लोग आत्मिक वैभव की अपेक्षा पौद्गलिक वैभव को अधिक मूल्यवान मानते हैं और उसी की ओर उनका आकर्षण होता है । यही कारण है कि विद्वानों और गुणीजनों की अपेक्षा धनियों को और अधिक आदर मिलता है और उन्हीं की तारीफ होती है ।। वही समाज के नेता समझे जाते हैं और जाति तथा समाज की नकेल उन्हीं के हाथ में रहती है । विद्वान और गुणी पुरुष का वैभव यद्यपि धन की अपेक्षा अधिक मूल्यवान है और उसका जीवनस्तर भी प्रायः उच्चतर होता है, तथापि उसकी प्रशंसा कम होती है। इस कारण उनकी ओर आकर्षण भी कम ही होता है। अगर धनी की तारीफ की तरह गुणियों और विद्वानों की तारीफ या महिमा बराबर होती रहे और सुनने में आती रहे तो आपका मन किस तरफ आकर्षित होगा ? निस्संदेह आपके मन में गुणियों के प्रति और विद्वानों के प्रति आकर्षण उत्पन्न होगा । ३७१ · ■ गुरु • निर्ग्रन्थ गुरु के पास भक्त पहुँच जाए तो न गुरु उससे कुछ लेता है और न उसे कुछ देता ही है। वह तो एक काम करता है-अज्ञान के अंधकार को हटाकर शरणागत के ज्ञान चक्षु खोलता है। 'ज्ञानांजन-शलाका' के माध्यम प्रकाश करता है और अज्ञान का जो चक्र घूमता है, उसको दूर करता 1 · देव का अवलम्बन परोक्ष रहता है और गुरु का अवलम्बन प्रत्यक्ष । कदाचित् ही कोई भाग्यशाली ऐसे नररल संसार में होंगे, जिन्हें देव के रूप में और गुरु के रूप में अर्थात् दोनों ही रूपों में एक ही आराध्य मिला हो । देव और गुरु एक ही मिलें, यह चतुर्थ आरक में ही संभव है। तीर्थंकर भगवान् महावीर में दोनों रूप विद्यमान थे वे देव भी थे और गुरु भी थे। लेकिन हमारे देव अलग हैं और गुरु अलग। हमारे लिए देव प्रत्यक्ष नहीं हैं, परन्तु गुरु प्रत्यक्ष हैं। इसलिए यदि कोई मानव अपना हित चाहता है, तो उस मानव को सद्गुरु की आराधना करनी
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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