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द्वितीय खण्ड : दर्शन खण्ड
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• धर्म की शरण ग्रहण करना है तो अन्तर्मन से दृढ संकल्प के साथ यह समझना होगा कि कषायोदय का प्रसंग
उपस्थित होने पर यदि मैं किञ्चित् भी दोलायमान हो गया तो क्रोध, मान, माया एवं लोभ मेरे आत्म गुणों की | हानि कर मुझे घोर रसातल में धकेल देंगे। • जब तक अज्ञान का जोर है, पाप की वंशवृद्धि होती रहेगी। पाप घटाने के लिए अज्ञान घटाना आवश्यक है। • आज का पापी कल तपश्चर्या से पुण्यात्मा व धर्मात्मा बन सकता है।