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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं ३१० जा रहा था। श्रद्धालु भक्तों ने हाथोंहाथ मांडी (अर्थी) को कंधा दिया और धीरे-धीरे वह (अर्थी) गंगवाल भवन के बाहर पहुँची। हर कोई कंधा देने को उतावला उसे छू भर लेने को आतुर, पर मांडी (अर्थी) तक पहुँच पाना क्या सरल था ? चलने को वहाँ जगह ही कहाँ थी, फिर भी हर एक चाह थी कि मैं भी कंधा दे सकूँ। जो भी कंधा देने में सफल रहा, उसे लगा मानो जीवन सफल हो गया हो, मानो जन्म-जन्म की साध पूरी हो गई हो, मानो उसने त्रैलोक्य का साम्राज्य प्राप्त कर लिया हो। यह सब भक्तों की श्रद्धा का रूप था। पार्थिव देह में अब अध्यात्म योगी का निवास नहीं था, किन्तु अभी भी वे शुभ पुद्गल लोगों की श्रद्धा को बाँधे हुए थे। इस अपार जन सैलाब में भी कोई धक्का-मुक्की नहीं, किसी को कोई चोट नहीं, गुरु कृपा से सभी सकुशल । लोगों की जुबां पर एक ही बात-ऐसी भीड़ न कभी देखने में आई न सुनने में आई।
यह यात्रा भण्डारी परिवार द्वारा अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक को अर्पित भण्डारी उपवन की ओर अग्रसर | थी। भंडारी उपवन तक रास्ते में सभी मकानों की छतों पर अनगिनत बहिनें व वृद्ध भक्तगण अन्तिम दर्शन हेतु खड़े थे। सभी हाथ जोड़ नत मस्तक थे, उस कर्मयोगी आत्मा को अपनी श्रद्धांजलि समर्पित करने को। महाप्रयाण-यात्रा में कई स्थानों से आई हुई भजन-मंडलियां यशोगान करती हुई आगे बढ़ रही थी। उनके आगे बैंड बाजे मरण पर विजय का जयगान कर रहे थे। शोक संतप्त निमाज ग्राम,का कण-कण, चप्पा-चप्पा धन्य-धन्य हो गया, पूज्य गुरुवर्य के नाम के साथ सर्वदा के लिये जुड़ गया। उपस्थित सभी दर्शनार्थी अतीत की स्मृतियों में खोये, गुरु सेवा में बिताये अपने जीवन-क्षणों को अपने जीवन की अमोल थाती माने, उन क्षणों को पुन: पुनः स्मरण करते आगे बढ़ते जा रहे थे। सभी का अपना, सभी का सर्वस्व, सभी का जीवनधन आज चिर यात्रा की ओर चल पड़ा। हर दिल से एक ही ध्वनि प्रतिध्वनित हो रही थी क्या इस युग में ऐसा युग पुरुष जन्म ले पायेगा ? ऐसा महापुरुष तो सदियों में एक होता है
'मौत उसकी है जिसका जमाना करे अफ़सोस।
यूं तो दुनिया में आए हैं मरने के लिए।' अंतत: महाप्रयाण-यात्रा भंडारी उपवन पहुँची। उपवन के बीचोंबीच अन्तिम संस्कार की पूर्ण तैयारी की जा चुकी थी। उस अपार जनसमूह को नियन्त्रित करने पुलिस-दल व कार्यकर्ता सचेष्ट थे, पर भला सागर की उत्ताल तरंगों को भी कोई बांध पाया है? रोक पाया है? तो इन भावाभिभूत आतुर भक्तों के सैलाब को कौन रोक पायेगा? जिसको भी जहां स्थान मिला, सभी बन्धन तोड़कर बैठ गए। सैकड़ों लोग वृक्षों पर बैठे यह दृश्य देख रहे | थे तो कई लोग अन्तिम दर्शन कर अपने नयनों को परितृप्त कर पाने हेतु ऊँटों पर बैठकर यह नजारा देख रहे थे। ___अपराह्न २ बजकर ४० मिनट पर उस महासाधक की तपोदीप्त देह को चंदन चिता पर रख दिया गया। चारों
ओर से 'हस्ती गुरु अमर रहे, जब तक सूरज चाँद रहेगा, हस्ती गुरु का नाम रहेगा।” हस्ती गुरुवर्य के निकट सांसारिक परिजन सर्वश्री सहजमलजी सा. बोहरा, अखिल भारतीय श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ के अध्यक्ष श्री मोफतराजजी सा. मुणोत, श्री गणेशमल जी भण्डारी व श्री सागरमलजी भंडारी ने उन महनीय योगिवर्य की उस पार्थिव देह को धधकती अग्नि को समर्पित किया तो सभी भक्तगण स्तब्ध एवं पस्त थे। एक युग का अंत हो गया, दिनकर अस्त हो गया। अब उनके परम पूज्य गुरुवर्य अनन्त में विलीन हो चुके थे। वह विहँसता मुख-मण्डल, वे विहँसती आँखें, आशीर्वाद देते वे वरद हस्त, सदैव आगे बढ़ते वे कदम, सभी कुछ तो इस सर्वहारां अग्नि को समर्पित हो चुके थे, अब कुछ शेष थी तो मात्र स्मृतियाँ ! उन स्मृतियों को अपने दिल में संजोये, उनके गुण स्मरण करते वे असंख्य भक्तजन अपने खाली हृदय लिये अपने-अपने स्थानों के लिये