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________________ प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड २८७ २३ फरवरी १९९१ बुधवार को सन्त-मण्डली ने सोजत सिटी में प्रवेश किया। सोजत संघ के हर्ष का पारावार नहीं रहा। धर्माराधन की नवीन उमंग एवं उत्साह देखने को मिला। सोजत संघ एवं अनन्य भक्त श्री भोपालचन्दजी पगारिया व भंवरलाल जी गोटावत बैंगलोर, जो सोजत के ही मूलनिवासी हैं, की भावना का आदर करते हुए गुरुदेव ने फाल्गुनी चौमासी सोजत शहर में ही की। दर्शनार्थी भक्तजन दर्शन को उमड़ पड़े। आचार्य श्री : जब तक सोजत विराजे, पूर्ववत् अप्रमत्त भाव से आध्यात्मिक ऊर्जा का उपयोग करते हुए आत्म-साधना में लीन रहे। आपने यहाँ पर वाणी से प्रवचन नहीं फरमाया, किन्तु स्वयं आपका साधनामय जीवन प्रवचन से बढ़कर बहुत कुछ। कह रहा था। बिना उपदेश के भी आपके दिव्य आभामण्डित तेजस्वी मुखमण्डल और आचारप्रधान अप्रमत्त जीवन ! . से, कोई भी प्रभावित एवं प्रेरित हुए बिना नहीं रहा। आचार्य श्री सहज साधना में संलग्न थे। फाल्गुनी चातुर्मास के प्रसंग पर जोधपुर , निमाज ,मेड़ता, बिलाड़ा । आदि अनेक ग्राम-नगरों के श्री संघ शेखेकाल व चातुर्मास की भावभीनी विनतियाँ लेकर उपस्थित हुए। लोग अपनी-अपनी अटकलें लगा रहे थे। विगत कुछ वर्षों से गुरुदेव होली चातुर्मासी के प्रसंग पर वर्षावास खोल दिया। करते थे, पर इस वर्ष दीर्घद्रष्टा आत्मज्ञानी आचार्यवर्य वर्षावास घोषणा का मानस नहीं बना रहे थे। उनके गुरु-गाम्भीर्ययुक्त मन एवं भावी के गर्भ की थाह पाना सबके सामर्थ्य के बाहर की बात थी। इसी मध्य अचानक ! जयपुर के प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ. एस.आर मेहता भी दर्शनार्थ आ गये। वे गुरुदेव के विश्वास पात्र चिकित्सक ही। नहीं वरन् पीढ़ियों के श्रावक एवं अनन्य गुरु भक्त भी हैं। डॉ. मेहता ने गुरुदेव के स्वास्थ्य का परीक्षण कर बताया। "पूज्य गुरुवर्य पर किसी भी बड़े रोग का तो उपद्रव नहीं है, वृद्धावस्था के कारण कफ, खांसी, अशक्तता और श्वास का उठाव हो जाता है, जिसके लिये नियमित उपचार की आवश्यकता है ।" डॉ. मेहता सा. ने आगे गुरुदेव से निवेदन करते हुए कहा “भगवन् ! अवस्था एवं स्वास्थ्य की दृष्टि से अब आपको एक स्थान पर विराजना आवश्यक ।। है एवं चिकित्सा सुविधाओं की दृष्टि से जोधपुर व जयपुर उपयुक्त क्षेत्र है। आप स्वयं दीर्घद्रष्टा, गहन अनुभवी एवं प्रबल आत्म-विश्वासी महापुरुष हैं, निर्णय के अधिकारी आप स्वयं है, आप श्री का निर्णय हम सबको मान्य एवं । शिरोधार्य है। ___ डॉक्टर साहब की सूझबूझपूर्ण बात श्रवण करने के पश्चात् पूज्य गुरुवर्य ने चातुर्मासिक विनति करने वाले। जन-समुदाय को अपना निर्णय सुनाते हुए फरमाया कि अभी अक्षय तृतीया से पूर्व कहीं पर भी चातुर्मास खोलने की। भावना नहीं है। सभी आश्चर्यचकित थे, किन्तु अनागत व गुरुदेव के मन की थाह ले पाना किसी के सामर्थ्य में नहीं था। सब अपने-अपने हिसाब से कयास लगा रहे थे। • अब मुझे जीवन का ज्यादा समय नहीं लगता दूसरे दिन चैत्र कृष्णा प्रतिपदा को सब सन्त गुरु चरणों में बैठे हुए थे। आचार्य भगवन्त ने गंभीरता के साथ || | संतों को रात्रिकालीन घटना का संक्षिप्त कथन करते हुए फरमाया-"भाई, मुझे रात्रि में किसी अदृश्य शक्ति ने प्रेरित करते हुए कहा-“आप तो बहुत जानकार हो। मैं आपने कई केऊँ अब आप सावधान हो जाओ।” गुरुदेव श्री ने संतों के समक्ष अपने आपको संबोधित करते हुए कहा “अब मुझे अधिकाधिक ध्यान, मौन,चिन्तन, साधना व स्वाध्याय में लग जाना चाहिये।” सन्तों ने निवेदन किया-“भगवन् ! आप तो साधना की पावन पवित्र धारा में सतत निमज्जित हुए ही रहते हैं।” इस बात को जैसे गुरुदेव ने सुना ही नहीं हो, उन महापुरुष के मुख मण्डल पर गांभीर्य की रेखायें स्पष्टतः परिलक्षित हो रही थीं। ADSLEFTra
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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