SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २०४ ठाणा की सहमति जानकर करुणानाथ ने अक्षयतृतीया पर औरंगाबाद पधारने की स्वीकृति फरमायी, जिससे औरंगाबाद संघ को अतीव प्रमोद हुआ और जामनेर विराजित सन्तों ने भी अपने विहार की दिशा औरंगाबाद की | ओर की। ____ आचार्य श्री जहाँ भी पधारते, प्राय: श्रद्धालु भक्तों का वहाँ आगमन होता रहता था। यह क्रम न केवल | मारवाड़ एवं मेवाड़ के ग्रामों में देखा गया, अपितु मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत के प्रान्तों में भी इसकी छाप दृष्टिगोचर हुई। इसमें आचार्य श्री का प्रभावशाली व्यक्तित्व ही प्रमुख कारण था, जो श्रावकों को दुर्गम एवं दूरस्थ स्थलों पर भी खींच लेता था। आपके सान्निध्य में श्रद्धालुभक्त शान्ति का अनुभव करने के साथ अपने आपको आध्यात्मिक ऊर्जा से समृद्ध अनुभव करते थे। आपश्री लासूर से डोण गांव, जम्भाला होते हुए औरंगाबाद छावनी पधारे। वहाँ के उपनगरों में आपके आध्यात्मिकता से ओतप्रोत प्रेरणादायी प्रवचन हुए। उनमें अक्षयतृतीया के दिन महावीर भवन कुमारवाड़ा के विशाल प्रांगण में भगवान् आदिनाथ की तपसाधना की महत्ता पर दिया गया आध्यात्मिक प्रवचन अद्वितीय रहा। इस अवसर पर अ.भा. श्री जैन रत्न हितैषी श्रावक संघ एवं सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के द्वारा न्यायाधिपति श्री चाँदमलजी लोढा जोधपुर, डॉ. सूर्यनारायणजी अजमेर, श्री चन्द्रराज जी सिंघवी जयपुर, श्री बादल चन्दजी मेहता इन्दौर का उल्लेखनीय सेवाओं के लिए अभिनन्दन किया गया तथा यहाँ स्वाध्याय समिति का गठन किया गया। महाराष्ट्र क्षेत्र में स्वाध्याय के व्यापक प्रचार-प्रसार हेतु श्री टीकमचन्दजी हीरावत जयपुर एवं श्री पनराजजी ओस्तवाल ने कतिपय क्षेत्रों का दौरा किया। लम्बे समय से जलगांव श्री संघ आगामी चातुर्मास हेतु आपकी सेवा में विनति कर रहा था। अक्षय तृतीया के प्रसंग पर उन्होंने अपनी विनति पुन: करुणाकर गुरुदेव के चरणों में प्रस्तुत की। चातुर्मास की स्वीकृति पाकर जलगांव वासियों के मन मयूर नाच उठे और वहाँ के संघ में हर्ष की लहर दौड़ गई। यहां से पूज्यपाद दौलताबाद, विश्वविख्यात लेणी गुफा होते हुए एलोरा पधारे व श्री | पार्श्वनाथ ब्रह्मचर्याश्रम विराजे । यहाँ से आप हत्तनूर, कन्नड़-अन्धानेर एवं भाँवरवाड़ी पधारे । यहाँ मराठवाड़ा की सीमा समाप्त होकर खानदेश की सीमा प्रारम्भ होती है। मराठवाड़ा से खानदेश में प्रवेश करते हुए आपका विहार चालीसगांव की ओर हुआ। यहां अगवानी में विशाल संख्या में भक्तजनों ने चुंगी चौकी से ही विहार में सम्मिलित होकर जय-जयकारों के साथ पूज्यपाद का प्रवेश कराया। यहां के ४-५ दिन के प्रवास में अनेक श्रद्धालु भक्तों ने नियमित स्वाध्याय एवं मासिक व साप्ताहिक दयावत के नियम अंगीकार किये। चरितनायक चालीसगांव से बागली , कजगांव, भडगांव, पांचोरा, महिन्दले, टिटवी, शिरसमणी, पारोला, बहादुरपुर आदि क्षेत्रों को अपनी पदरज से पावन बनाते हुए आमलनेर पधारे, जहां ५ जून से जैनधर्म संस्कार शिविर प्रारम्भ हुआ। शिविर में ३४ छात्रों व ३५ छात्राओं ने भाग लिया। यहां से पूज्यपाद दहीवद नीमगंवाड़ फरसते हुए चौपड़ा पधारे, जहां २० छात्रों व ३० छात्राओं ने भीषण गर्मी में भी स्थानीय धार्मिक संस्कार शिविर में नियमित उपस्थित होकर ज्ञानार्जन किया। युगप्रभावक आचार्य भगवन्त के पावन प्रवचनामृत से प्रभावित भव्य जनों ने अनेक व्रत-प्रत्याख्यान स्वीकार किये। मधुर व्याख्यानी श्री हीरामुनि जी म.सा. (वर्तमान आचार्य प्रवर) ने अपने प्रवचनों के माध्यम से रात्रि-भोजन त्याग व सामायिक स्वाध्याय की प्रभावी प्रेरणा की। चौपड़ा से २० जून १९७९ को श्रद्धासिक्त भावभीने वातावरण में विहार कर करुणाकर अडावद चिंचोली, साकली, यावल व नीमगांव में धर्म प्रेरणा करते हुए भुसावल पधारे। भुसावल में जिनवाणी की पावन सरिता प्रवाहित करते हुये आपका विहार चातुर्मासार्थ जलगांव की ओर हुआ।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy