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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२०५ • जलगांव चातुर्मास (वि.सं. २०३६)
जलगांव चातुर्मास की स्वीकृति के समय से ही जलगांववासी अति उत्साहित मन से आचार्य भगवन्त के | पावन पदार्पण की प्रतीक्षा में थे। सबके मन में प्रबल उत्कंठा व दृढ संकल्प था कि शीघ्र भगवन्त पधारें और हम उनके चातुर्मासिक सान्निध्य में नित्य प्रति पावन दर्शन, वन्दन व प्रवचन श्रवण का लाभ लें। अपने जीवन में व्रत-नियम, त्याग-प्रत्याख्यान अंगीकार कर साधना के सुमेरु आचार्य देव के चरणारविन्दों में अपनी भक्ति के पुष्प अर्पित करें तथा अपने आपको धन्य धन्य बनायें। साकेगांव, नशीराबाद होते हुए दिनांक ५ जुलाई १९७९ को पूज्यपाद के वि.सं. २०३६ के ५९ वें चातुर्मासार्थ जलगांव पदार्पण से जलगांव का कण-कण मानो नाच उठा, सभी के चेहरों पर अपने सौभाग्य के प्रति प्रमोद व्यक्त होने के साथ ही इस चातुर्मास में कुछ कर गुजरने का प्रबल उत्साह व श्रद्धा का आवेग परिलक्षित हो रहा था। जैन धर्म, श्रमण भगवान महावीर एवं गुरु हस्ती की जय-जयकार से जलगांव के राजमार्ग व नवजीवन मंगल कार्यालय की ओर जाने वाले सभी मार्ग गूंज उठे। श्रावक श्राविका आबालवृद्ध जैन-जैनेतर के कदम मानो स्वत: आपके चातुर्मास स्थल की ओर उठ रहे थे। मंगलमय प्रवेश की वेला में जलगांव के अग्रगण्य श्रावक प्रबुद्ध स्वाध्यायी श्री नथमलजी लूंकड़, उज्ज्वल विरासत के धनी श्री ईश्वर बाबू ललवानी, परम पूज्य गुरुदेव के प्रति सर्वतोभावेन समर्पण करने को समुत्सुक समाजसेवी श्री सुरेशकुमार जी जैन, शाकाहार के प्रबल प्रेरक भी रतनलाल जी बाफना आदि गणमान्य सुश्रावकगण व अन्य वक्ताओं ने प्रमुदित मन से आराध्य गुरुदेव का अभिनन्दन करते हुए अपने मन के भाव श्री चरणों में अर्पित किये। यहां प्रथम प्रवचन में ही पूज्यपाद गुरुदेव ने स्वाध्याय का संदेश प्रसारित करते हुए जलगांव वासियों को धर्मसाधना से जुड़ कर स्वाध्याय के माध्यम से जिनवाणी की पावन सरिता को महाराष्ट्र के कोने-कोने में पहुंचाने का आह्वान करते हुए फरमाया - "आत्मा के भीतर अनन्त शक्ति और सामर्थ्य है, इसको पहिचानने का माध्यम है 'स्वाध्याय'। ज्ञान की ज्योति जगाने का सशक्त साधन है 'स्वाध्याय'। श्रद्धाशील भक्तों के मानस पटल पर आपके जादुई शब्द मानो अंकित हो गये थे। समाजसेवी सुश्रावकों ने अपनी आस्था के अनन्य केन्द्र आचार्य हस्ती की प्रेरणा को मूर्त रूप देने का दृढ संकल्प किया और ८ जुलाई को ही यहां महाराष्ट्र जैन स्वाध्याय संघ की स्थापना हुई जो अद्यावधि स्वाध्याय संघ, जोधपुर की क्षेत्रीय ईकाई के रूप में महाराष्ट्र प्रान्त में स्वाध्याय की अलख जगाये हुए है व इसके द्वारा शिविरों और धार्मिक पाठशालाओं के माध्यम से सक्रिय स्वाध्यायी तैयार करने व पर्युषण पर्वाराधन हेतु सैकड़ों क्षेत्रों में स्वाध्यायी भेज कर जिनशासन-सेवा का महान् कार्य किया जा रहा है।
महाराष्ट्र स्वाध्याय संघ की स्थापना मानो इस चातुर्मास में सम्पन्न होने वाले कार्यों का शुभारम्भ था। पूरे चातुर्मास में दीर्घगामी संस्थाहितकारी प्रवृत्तियों के शुभारम्भ का क्रम चलता ही रहा। चातुर्मास में धीरे धीरे बहूमंडल व सास मंडल की बहिनों में जैनधर्म व दर्शन के शिक्षण के माध्यम से ज्ञान-प्रसार का कार्य तो आगे बढ़ा ही, साथ ही जैन आचार शैली, समन्वय-शान्ति युक्त गृहस्थ जीवन के संस्कारों को हृदयंगम कर बहिनों ने घर-घर में शान्ति, स्नेह व समन्वय का आदर्श अपना कर आदर्श जैन परिवारों की संरचना का अभिनव कार्य किया। उस समय | ज्ञानाराधन कर जो बहिनें श्राविका-मंडल से जुड़ी, उनमें श्रीमती विजया जी मल्हारा, रसीला जी बरडिया प्रभृति बहिनें आज बहूमंडल व स्वाध्याय संघ के माध्यम से बहिनों में स्वाध्याय, शिक्षा व संस्कार निर्माण का सन्देश प्रचारित करने में कुशलतापूर्वक अपना योगदान कर रही हैं।
यह चातुर्मास महाराष्ट्र में स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार हेतु मील का पत्थर साबित हुआ। यहां के कुशल कर्मठ |