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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
२०३ शिरोमणि आचार्य श्री को अपने यहाँ विराजने का आग्रह किया। फिर चिचुआ से चांदवड़ पधारते समय आपने ३ मील की दुर्गम पहाड़ी पार कर मार्ग में नेमिनाथ ब्रह्मचर्याश्रम में छात्रों को सम्बोधित किया। फिर कांजी, सांगवी होते हुए चरितनायक लासलगांव पधारे। वहाँ श्री आनन्दराज जी मूथा के नेतृत्व में 'युवक धर्म से विमुख क्यों?' विषय पर आयोजित गोष्ठी में आचार्य श्री ने अनेक युवकों की शंकाओं का समाधान करते हुए उन्हें नित्य स्वाध्याय की प्रेरणा दी। आपने फरमाया-“भौतिकता का आकर्षण मनुष्य को जल्दी प्रभावित करता है, धर्म एवं अध्यात्म का महत्त्व देर से समझ में आता है। किन्तु जो धर्म और अध्यात्म के लिए गुरुजनों की सत्संगति में नहीं आते, वे सदा के लिए सही समझ से वंचित हो जाते हैं। बुजुर्गों का आचरण भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। वे धर्म को अपने जीवन-व्यवहार में अपना लें तो कोई ।।
कारण नहीं कि उनके सम्पर्क में आए युवा धर्म से विमुख हों। धर्म की आवश्यकता क्यों, इसका । चिन्तन युवकों में प्रसारित करने की आवश्यकता है।"
आचार्य श्री के ३६ वर्षों बाद शुभागमन से लासलगांववासियों को यह प्रतीत हुआ कि हमारा भाग्योदय है | कि ऐसे उत्कृष्ट संयमधनी युग-मनीषी अध्यात्म योगी के चरण इस छोटे से गांव में पड़े हैं। ग्रामवासियों ने पूर्ण मनोयोग से आपके पदार्पण का लाभ उठाने में कोई कोर-कसर नहीं रखी। तपस्या का तांता लग गया। सामूहिक दयाव्रत, पौषध, उपवास आदि के साथ ३५ युवकों ने प्रतिदिन स्थानक में आकर सामूहिक स्वाध्याय करने का संकल्प लिया। पूरे एक सप्ताह पर्युषण जैसा धर्माराधन का ठाट रहा। ब्रह्मेचा एवं सांड परिवार ने आगन्तुकों के सेवा-सत्कार का लाभ लिया। जोधपुर में महासती श्री बिरदीकंवर जी म.सा. के देहावसान के समाचार प्राप्त होने पर धर्मसभा में आचार्य श्री ने सतीजी की सेवा, कष्टसहिष्णुता एवं संयमी जीवन पर प्रकाश डाला और चार लोगस्स का | कायोत्सर्ग कर स्वर्गस्थ आत्मा के प्रति शान्ति की कामना की।
अप्रमत्त साधक आचार्य श्री दक्षिण भारत के दुर्गम मार्गों को पार करते हुए भी बिना थके पूर्ण उत्साह के साथ जिनशासन प्रभावना व जनकल्याण के कार्यों के प्रति जागरूक थे। आपका इन क्षेत्रों में यह आगमन जन-जन के मानस में त्याग, तप, स्वाध्याय, सामायिक एवं व्रत-नियमों के प्रति आस्था एवं उमंग प्रकट कर रहा था। जहां-जहां भी आपके कदम पड़ते, वहाँ के लोग अपने जीवन को धन्य-धन्य समझते।
लासलगाँव से विहार कर आचार्य श्री पालखेड़, पीपलगाँव, बसवन्त, दावचवाड़ी, नान्दुर्डी, तलेगाँव रोडी होते हुए मनमाड़ पधारे, जहाँ स्वाध्याय-प्रवृत्ति का श्री गणेश हुआ। श्री पी.एस. सिंघवी संयोजक नियुक्त किये गए। अंकाई में मद्रास के सुश्रावक श्री पृथ्वीराजजी कवाड़ ने सपरिवार धर्मलाभ लिया। पूज्यपाद यहाँ से २१ ॥ किलोमीटर का उग्र विहार कर येवला पधारे। यहाँ से १ अप्रेल १९७९ को विहार कर आपके अन्दरसूले पधारने पर ||
औरंगाबाद एवं जालना संघ के प्रतिनिधिमण्डल अक्षयतृतीया पर अपने यहाँ विराजने हेतु भावपूर्ण विनति लेकर | उपस्थित हुए । सूरेगाँव से बैजापुर पधारने पर आपके प्रवचन से युवकों में धार्मिक चेतना का संचार हुआ व उन्होंने || श्री ऋषभचन्दजी संचेती के नेतृत्व में नित्य स्वाध्याय करने की प्रतिज्ञा की। फिर खण्डाला, भीवगांव, घूघरगांव में जिनवाणी का पान कराते हुए आप लासूर स्टेशन पधारे, जहाँ १० अप्रेल १९७९ महावीर जयन्ती पर | अध्यात्म-कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। आचार्य श्री ने भगवान महावीर के उपदेशों की उपादेयता का प्रभावी प्रतिपादन || किया। आपकी प्रेरणा से लासूर गांव एवं लासूर स्टेशन पर स्वाध्याय मण्डल का गठन हुआ। यहाँ जलगाँव का | शिष्टमण्डल विनति लेकर उपस्थित हुआ। बोदवड़ जामनेर विराजित सेवाभावी श्री लघु लक्ष्मीचन्दजी महाराज आदि ||
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