SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं २०२ रहा। शिरपुर में श्रावक-श्राविकाओं ने विविध प्रत्याख्यान अंगीकार कर विशेष श्रद्धा-भक्ति का परिचय दिया। प्रात: एवं अपराह्न दोनों समय यहाँ उपस्थित होकर धुलिया, जलगांव, गोलयाना, नन्दुरबार, वर्शी, नरडाणा आदि क्षेत्रों के धर्मप्रेमियों ने भगवन्त की सेवा में अपने-अपने क्षेत्र स्पर्शन हेतु आग्रह एवं विनययुक्त निवेदन किया। शिरपुर से आपश्री वर्शी पधारे । यहाँ श्री कान्तिलाल जी बाफना जो अमेरिका में कोयले से पेट्रोल तैयार करने सम्बंधी विषय पर पी- एच. डी. के लिए शोध कार्य कर रहे थे, ने आचार्य श्री से विधिवत् श्रावक धर्म की दीक्षा ग्रहण की। आपके पदार्पण पर नरडाणा में संघ का मतभेद प्रेम में बदल गया। ___ आप विद्वत्ता के साथ सरलरूपेण तत्त्वज्ञान को श्रोतृ-समुदाय को समझाने में दक्ष थे। इसलिए आपके शान्त, गम्भीर एवं मन्द स्वर भी एकाग्रतापूर्वक सुने जाते थे। आपको अपने यश की नहीं, जिनशासन की सेवा एवं जन-जन के सच्चे जीवन-निर्माण की चिन्ता थी। इसलिए आप किसी को अपने से न जोड़कर जिनेन्द्र भगवान एवं उनकी वाणी से ही जोड़ने का लक्ष्य रखते थे। किन्तु भक्त की आस्था, भगवान से अधिक गुरु के प्रति जुड़ जाए यह भी स्वाभाविक विकास की प्रक्रिया है। अत: कई भक्तों ने तो गुरु हस्ती को ही अपने हृदय के भगवान के रूप में स्वीकार किया है। नरडाणा से मालिच, सोनागिर, नगांव होते हुए आप २३ फरवरी को धुलिया पधारे। आपके शुभागमन पर महाराष्ट्र के लोकप्रिय दैनिक 'स्वतंत्र भारत' ने पूरे पृष्ठ में आपश्री के विराट् व्यक्तित्व पर महत्त्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित की, जिसकी सैकड़ों प्रतियाँ हाथों-हाथ समाप्त हो गईं। नगरप्रवेश का दृश्य अतीव मनमोहक था। “आचार्य श्री आये हैं, नयी रोशनी लाये हैं" के जयघोषों से सम्पूर्ण नगर आह्लादित था। चरितनायक ने यहाँ अमोलक ज्ञानालय में हस्तलिखित शास्त्रों एवं ग्रन्थों का अवलोकन कर ऐतिहासिक तथ्य संकलित किये। यहाँ स्वाध्याय संघ की स्थापना हुई। प्राकृत ग्रन्थ 'कुवलयमाला' में वर्णित चण्डसोम, मान भट्ट मायादित्य, लोभदेव और मोहदत्त के आख्यानों के माध्यम से आत्म-कर्तृत्व, कर्म, कषाय, सम्यक्त्व, भव-भ्रमण, मुक्ति आदि विषयों पर आचार्य श्री द्वारा की गई व्याख्या से शिवाजी विद्या प्रसारक संस्थान के कला, विज्ञान और वाणिज्य कालेज के प्रोफेसर (प्राकृत) श्री विश्वनाथ जंगम तथा अनेक विद्यार्थी अत्यंत प्रभावित और श्रद्धाभिभूत हुए। यहाँ ३० व्यक्तियों ने नित्यप्रति स्वाध्याय करने व माह में एक दया करने का संकल्प कर साधनामार्ग में अपने चरण बढाये। २ मार्च से एक सप्ताह तक आपने मालेगांव के विभिन्न उपनगरों को फरसते हुए धर्म की महत्ती प्रेरणा की। यहाँ सुश्रावक श्री मालूजी के नेतृत्व में बीस-पच्चीस युवकों ने स्थानक में नित्य आकर सामूहिक सामायिक स्वाध्याय करने के संकल्प लिए। यहां महासती प्रीतिसुधाजी म.सा. आदि ठाणा एवं मूर्तिपूजक परम्परा के सन्त श्री चन्द्रशेखरजी आदि ठाणा चरितनायक के दर्शनार्थ पधारे। हीरादेसर (मारवाड़) के लोढा बन्धुओं की गुरुभक्ति एवं संघसेवा उल्लेखनीय रही। लासलगाँव की प्रबल विनति एवं आन्तरिक भावना को महत्त्व देकर करुणानिधान ने शताधिक मील की अतिरिक्त पदयात्रा के कष्ट को भी गौण कर दिया। इसलिए लासलगाँव होकर जलगाँव जाने का लक्ष्य बनाया। • लासलगाँव होकर खानदेश में प्रवेश मालेगांव से पाटणा, सोदाणा फरसते हुए आप उमराणा पधारे। यहाँ फाल्गुनी चौमासी पर आपकी महती प्रेरणा से दैनिक स्वाध्याय की प्रवृत्ति प्रारम्भ हुई। रामदेव टेकरी के अहिंसा भगत जबरी बाबा ने आध्यात्मिक सन्त
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy