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________________ andi प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड १६५ बहुत ही महत्त्वपूर्ण शिविर था, जिसके पश्चात् ग्रीष्मकाल में लगभग प्रतिवर्ष शिविरों का आयोजन प्रारम्भ हुआ। ___आचार्य श्री रत्नचन्द्र जी म.सा. की पुण्य तिथि ज्येष्ठ शुक्ला १४ को ५०० सामायिक दया, पौषध की आराधना के अनन्तर आप जयपुर से किशनगढ़ होते हुए अजमेर पधारे। अजमेर से पादू पधारने पर पंडितमुनि श्री लक्ष्मीचन्दजी म.सा. आदि ठाणा ३ के साथ मिलन हुआ एवं एक दिन साथ विराजकर आपका चातुर्मासार्थ मेड़ता की | ओर विहार हुआ। • मेड़ता चातुर्मास (संवत् २०२७) ___संवत् २०२७ के पचासवें चातुर्मास के लिए आपका जयघोष करते नर-नारियों, बालक-बालिकाओं के || विशाल समूह के साथ ठाणा ६ से आषाढ शुक्ला ९ सोमवार १३ जुलाई १९७० को मेड़ता स्थानक में प्रवेश हुआ। आपकी प्रेरणा और सदुपदेश से श्रावण पूर्णिमा के दिन मीरा की नगरी मेड़ता में भूधर जैन पाठशाला का उद्घाटन हुआ। यहीं पर श्री गजेन्द्र जैन सामायिक स्वाध्याय मंडल की स्थापना हुई। यहाँ श्री हीराचन्द जी म.सा. (वर्तमान आचार्य) ने 'जय श्री शोभाचन्द्र' पुस्तक लिखी। आपकी आज्ञानुवर्तिनी स्थविरा महासती श्री हरकँवरजी म.सा. ठाणा ४ से यहाँ ही विराजमान थी। महासती श्री किशनकंवरजी ने मासक्षपण की तपस्या की। श्री रतनलालजी सिंघी के जीवन में परिवर्तन हुआ। इस चातुर्मास में छोटी-बड़ी अनेक तपस्याओं का ठाट रहा, ग्यारह श्रावक १२ व्रती बने एवं पाँच दम्पतियों ने | आजीवन शीलवत अंगीकार किया। ___ पूज्य गुरुदेव के साधनाकाल के ५० वर्ष आगामी माघ शुक्ला द्वितीया संवत् २०२७ को पूर्ण होने के परिप्रेक्ष्य में श्रावक समुदाय ने इसे समारोहपूर्वक मनाने हेतु अपनी भावना बार-बार पूज्यवर्य के समक्ष प्रस्तुत की, पर पूज्य वर्य का स्पष्ट उत्तर था–“आप हमें साधक मानते हैं, साधकों के जीवन प्रसंग पर तो संयम साधना व त्याग-प्रत्याख्यान की ही भेंट देकर अपनी भावनाएँ प्रस्तुत की जा सकती हैं।" आपश्री के श्रीमुख से यह फरमाने पर कि “मेरा क्या, इस समय (माघ शुक्ला पंचमी) तो मेरे जीवन निर्माता पूज्य गुरुदेव आचार्य श्री शोभाचंदजी म.सा. की दीक्षा की शताब्दी का प्रसंग है" श्रावक वर्ग ने सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल के तत्त्वावधान में इस अवसर पर साधना कार्यक्रम आयोजित करने का निर्णय लिया। तदनुसार न्यायमूर्ति श्री इन्द्रनाथजी मोदी की अध्यक्षता में सम्यग्ज्ञान प्रचारक मण्डल की बैठक आयोजित की गई एवं “आचार्य श्री शोभाचन्द्रजी म.सा. दीक्षा शताब्दी साधना-समारोह समिति” का गठन कर मात्र अठारह वर्ष के छात्र श्री ज्ञानेन्द्रजी बाफना को इसके मंत्री पद का दायित्व सौंपा गया। पूज्यपाद को अपनी प्रशंसा, अभिनन्दन व अपने स्वयं के नाम में कोई आयोजन स्वीकार्य ही नहीं था। निरतिचार साधना के ५० वर्ष पूर्ण होने पर भी आपसे ऐसे किसी आयोजन की सहमति मिलने की कोई संभावना नहीं थी। संयोग से पूज्यपाद गुरुदेव की दीक्षा शताब्दी का प्रसंग साथ में होने से व भक्तों का प्रबल भक्तियुक्त आग्रह होने से आपने भक्तों के उत्साह को साधना एवं त्याग-वैराग्य से जोड़ने का यह अभिनव प्रयास किया। जो भी कार्य हुआ उसे पूज्य गुरुवर्य के नाम से जोड़ना आपकी निर्लिप्तता , उत्कट गुरुभक्ति तथा आपकी विनम्रता का परिचायक रहा।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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