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'प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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| निषेध दिवस मनाया गया । यहाँ मेघवाल बंधुओं ने व्याख्यान में मद्य-निषेध की प्रतिज्ञा की। कई जोड़ों ने शीलव्रत अंगीकार किए। यहाँ से आप नाडसर, वारणी, हरसोलाव, नोखा, रूण, खजवाणा, मूंडवा आदि में धर्म-प्रचार करते हुए नागौर पधारे। रात्रि में विविध विषयों पर प्रश्नोत्तर हुए। बालकों तथा बड़ों ने बीड़ी सिगरेट के त्याग किए । | चरितनायक के ग्रामानुग्राम विचरण करते समय जैनेतर घरों के सदस्यों में भी तपस्या, कुव्यसन- त्याग आदि के प्रति अनन्य उत्साह देखा गया। डेह में आचार्यश्री ने भृगु पुरोहित पर प्रवचन दिया जो जैन तथा जैनेतर समाज के लिए अत्यंत प्रेरणास्पद रहा । कुचेरा, मेड़ता होते आप रणसीगाँव पधारे। शिक्षा या विद्या, जीवन चलाने के लिए नहीं, किन्तु जीवन-निर्माण के लिए है, इसे समझाते हुए आचार्य श्री ने फरमाया कि साक्षरता रहित ज्ञान वाले पशु-पक्षी भी जीवन चलाते देखे जाते हैं। भोजन, पान तथा गृह निर्माण आदि कलाओं में निपुण, किन्तु अनपढ़ पशु-पक्षी जीवन बना नहीं सकते, केवल चलाते हैं। यदि हम मानव होकर विद्या पढ़कर भी इसी प्रकार जीवन चलाकर संतोष कर लें तो यह हमारी भूल होगी। रणसीगाँव में दिया यह शिक्षा व्याख्यान किसी दीक्षान्त समारोह के वक्तव्य से भी बढ़कर था ।
जोधपुर के सरदार विद्यालय के विशाल प्रांगण में ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठी संवत् २०२६ गुरुवार २२ मई १९६९ को आचार्य श्री के सान्निध्य में विरक्ता सुशीलाकुमारीजी (सुपुत्री श्री भैरव सिंह जी एवं श्रीमती उगमकंवर जी | मेहता, जोधपुर) को दीक्षा प्रदान कर उन्हें महासती श्री मदनकंवर जी म. की शिष्या घोषित किया गया ।
जोधपुर के सभी सम्प्रदायों व जातियों के भक्तों पर आपका व्यापक प्रभाव रहा है । आप जब कभी जोधपुर पधारते, स्थानकवासी, मूर्तिपूजक, वैष्णव सभी लोग बिना किसी साम्प्रदायिक भेद के आपके दर्शन, प्रवचन श्रवण | का लाभ लेने हेतु उद्यत रहते । इस प्रवास में तपागच्छ के क्रिया भवन में आपके दो प्रवचन हुए। उन प्रवचनों में | आपने पांच समवाय में पुरुषार्थ की प्रधानता का निरूपण किया। सरदारपुरा, मुथाजी का मन्दिर, महामन्दिर आदि उप | नगरों में भी आपका विराजना हुआ।
नागौर चातुर्मास (संवत् २०२६)
संवत् २०२६ (सन् १९६९) का आपका चातुर्मास नागौर में हुआ। नागौर पुराना क्षेत्र है । रत्नवंशीय परम्परा से इस क्षेत्र का दीर्घकाल से संबंध रहा है। अपने आराध्य गुरु भगवंत जन-जन की आस्था के केन्द्र पूज्य चरितनायक का वर्षावास पाकर नागौर निवासियों में प्रबल उत्साह था। इस चातुर्मास में ज्ञान, ध्यान, तप-त्याग व व्रत- प्रत्याख्यान का ठाट रहा । इस चातुर्मास में ९ दम्पतियों ने शीलव्रत अंगीकार कर अपने जीवन को भावित किया, | कई व्यक्ति पर्युषण सेवा देने हेतु सक्रिय स्वाध्यायी बने। इस चातुर्मास में स्वाध्यायियों के ज्ञानाराधन हेतु पत्राचार पाठ्यक्रम की रूपरेखा बना कर चार कक्षाएँ निर्धारित की गई एवं उनके प्रशिक्षणार्थ दिनांक २६ अक्टूबर से ५ नवम्बर तक शिक्षण शिविर का आयोजन भी किया गया। इस चातुर्मास में सरदारपुरा, जोधपुर में विराजित स्वामी जी श्री लाभचन्दजी म.सा. का स्वर्गवास हो गया। श्री लाभचन्दजी म.सा. ने विक्रम संवत् १९७० की अक्षय तृतीया को १८ वर्ष की युवावय में पूज्य आचार्य श्री शोभाचन्द जी म.सा. से भागवती श्रमण दीक्षा अंगीकार कर साधना-मार्ग में अपने कदम बढ़ाये थे । कायोत्सर्ग कर स्वामी जी म.सा. को श्रद्धांजलि समर्पित की गई ।
• शीलव्रत के पालन पर बल
नागौर का वर्षावास सम्पन्न कर चरितनायक कडलू, मूंदियाड, गोवा, बासनी, गच्छीपुरा, सोयला फरसते हुए
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