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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं (१६२ शीलवत अंगीकार कर अपने जीवन को सुशोभित किया। जैनेतर भाई भी तपत्याग में पीछे नहीं रहे। प्राणिमात्र को अभय देने वाले षट्काय प्रतिपालक सन्त-महापुरुषों की वाणी से हिंसक व्यक्तियों में भी दया व करुणा का संचार हआ। आपसे प्रतिबोध पाकर तीन मछुआरों ने जीवन पर्यन्त मछली मारने का त्याग कर दिया, कई हरिजन भाइयों ने आपके पावन दर्शन कर मद्य-मांस का त्याग कर अपने आपको पवित्र बनाया। तप-त्याग ही नहीं, धार्मिक शिक्षण के क्षेत्र में भी चातुर्मास विशेष उपलब्धिपूर्ण रहा। पाली के अनेक मोहल्लों में धार्मिक पाठशालाएं प्रारम्भ हुई। पूज्यपाद द्वारा छोटे संतों को ज्ञानदान देने व सन्त-सती वृन्द के साथ शास्त्र-वाचन का क्रम चलने से चातुर्मास ज्ञानाराधन की दृष्टि से भी उपयोगी रहा। चातुर्मास में जोधपुर , जयपुर, बालोतरा आदि स्थानों के श्रावकों का विशेष आवागमन बना रहा। सामायिक | | संघ एवं स्वाध्याय संघ की गतिविधियों को आगे बढाने हेतु कार्यकर्तागण चिन्तनशील रहे। • राणावास, पीपाड़, भोपालगढ होकर जोधपुर चातुर्मासोपरान्त यहाँ से आप रावल गाँव, लाम्बिया, खारची, मारवाड़ जंक्शन, रडावास, केसरीसिंह जी का गुडा आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी को राणावास पदार्पण कर छात्रावास में विराजे । कन्या पाठशाला की भी जानकारी ली। यहां से आप सिरीयारी, सारण होते हुए वोपारी पधारे, जहाँ आपकी पावन प्रेरणा से संघ का मतभेद समाप्त हुआ। यहाँ से सोजत रोड़ सोजत शहर, पिचियाक, भावी आदि क्षेत्रों को स्पर्श करते हुए आपने पीपाड़ पदार्पण किया, जहाँ महासती श्री तेजकंवर जी म.सा. आदि ठाणा दर्शनार्थ पधारे। लकवे से ग्रस्त | वयोवृद्धा महासती श्री रुकमा जी म.सा. को दर्शन देने आचार्य श्री स्वयं पधारे। तपागच्छ के आचार्य श्री समुद्रविजय जी म.सा. एवं उनके आज्ञानुवर्ती श्री जयविजयजी म.सा. का भी इसी समय पीपाड़ आगमन हुआ। रीयां में हिन्दू-मुस्लिम समस्त धर्मावलम्बियों ने आचार्य श्री के दर्शनों का लाभ लिया। पीपाड़ में पुनः पधारने पर आचार्य श्री की जन्म जयन्ती सामायिक, स्वाध्याय, दया, तप, त्यागपूर्वक २ जनवरी | १९६९ को मनायी गई। आचार्य श्री का जैन एकता पर सदा से बल रहा। सम्प्रदायातीत भगवान महावीर के सिद्धान्तों का प्रतिपालन चतुर्विध संघ का प्रमुख ध्येय रहे, एतदर्थ एकता के विभिन्न प्रस्ताव आचार्य श्री के सान्निध्य | में श्रावकों द्वारा पारित किए गए, यथा १. धर्मस्थान धर्माराधन के लिए है, किसी जाति या सम्प्रदाय द्वारा उस पर अधिकार जता कर | झगड़ा करने हेतु नहीं, अतः धर्म-स्थानों के लिए झगड़ा नहीं किया जावे। २. सम्प्रदाय या संघभेद के बिना पंच महाव्रतधारी साधु-साध्वी की सेवा एवं उनकी संयमसाधना | में सहयोग देंगे तथा संयमविरुद्ध प्रवृत्ति को रोकने हेतु व्यक्तिगत निवेदन करेंगे। पर्चे निकालना अथवा समाज का वातावरण दूषित करना उचित नहीं। ३. सम्प्रदाय परिवर्तन के लिए प्रेरणा देना प्रेम में बाधक है, अतः विभिन्न सम्प्रदायों में प्रेम | सम्बंध बढ़ाया जावे, एतदर्थ सम्प्रदाय परिवर्तन की प्रेरणा नहीं करेंगे। ____ इस प्रसंग में नैतिक एवं चारित्रिक उत्थान के प्रयत्नों हेतु मार्मिक अपील की गई। १४ जनवरी ६९ को धार्मिक पाठशाला भी प्रारम्भ हुई। ___ पीपाड़ से साथिन, कोसाणा, खांगटा, रतकूड़िया, कूडी होते हुए चरितनायक के भोपालगढ़ पधारने पर मद्य
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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