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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
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मुकनजी आदि भी आगे आए।
मध्यस्थगण श्री सम्पतमलजी एवं श्री गणपतचन्दजी ने समत्वसाधक चरितनायक के मैत्री एवं समरसता के सन्देश के अनुसार समाधान निकालने हेतु सबकी बात सुनकर समझकर सुलह का फैसला सुनाया तो समूचे सिवांची क्षेत्र में प्रेम व हर्ष की लहर दौड़ गई। सभी युगमनीषी चरितनायक का उपकार मान रहे थे। सर्वत्र एक ही चर्चा थी कि जो कार्य अनेक प्रयासों से नहीं हो पाया, वह इन आबाल ब्रह्मव्रती महापुरुष के पदार्पण व अतिशय से सहज ही सम्पन्न हो गया। धन्य है महापुरुष जिनके चरण जिस ओर भी अंकित हो जाये वहां कलह अशान्ति रह ही नहीं सकते। समाज में छायी शान्ति, प्रसन्नता व मैत्री भाव के संचरण से चरितनायक को भी प्रमोद व स्वाभाविक सन्तोष था। झगड़ा प्रेम में बदल गया, पारस्परिक क्रोध का शमन हुआ, शान्ति सरिता लहराने लगी, स्नेह सद्भाव के तराने गूंजने लगे।
सितम्बर १९६५ में सीमा पर भारत की सेनाएं आक्रान्ता पाक सेनाओं का सामना करते युद्धरत थी। पाकिस्तान द्वारा जोधपुर तक अपने युद्धक विमानों द्वारा बम वर्षा की जा रही थी। जोधपुर के लोग भयाक्रान्त थे। हजारों की संख्या में नागरिक जन सुरक्षित स्थानों की चाह व मृत्युभय से जोधपुर छोड़ चुके थे। जैसे ही रात्रि होती, नगर जनों में एक ही आशंका थी कि न जाने कल का प्रभात देख पायेंगे या नहीं? कहीं आज की रात्रि काल रात्रि बन कर हम नगरवासियों को सामूहिक रूप से अपने आगोश में न ले ले।
ऐसे समय में देश के कोने-कोने में रहे हुए हजारों लाखों भक्तों के मन के किसी कोने में अपने आराध्य गुरु भगवंत के बालोतरा विराजने से अनेक आशंकाएं व दुश्चिन्ताएं जन्म लेना सहज स्वाभाविक था। अन्य महापुरुषों के मन में भी पूज्य श्री के कुशल-मंगल के बारे में चिन्ता लगी रहती थी। स्वयं परम पूज्य आचार्य श्री आनन्द ऋषि जी महाराज साहब का परामर्श था कि ऐसी स्थिति में पूज्य श्री बालोतरा से अन्यत्र विहार कर दें तो आपवादिक स्थिति में शास्त्रीय मर्यादा के निर्वहन में कोई बाधा नहीं है। पर स्वयं भगवन्त के मन में तो कोई ऊहापोह नहीं था, उन्हें तो अपने आत्मबल पर पूर्ण विश्वास था, अपनी संयम-साधना के सुरक्षा कवच में यह महापुरुष अडोल अकम्प था। आपवादिक परिस्थितियों में भी उनके मन में अन्यत्र विहार करने की कल्पना भी न थी।
भेद विज्ञान का ज्ञाता जीवन-मरण की चिन्ताओं से परे, साधना सुसम्पन्न, संयम व्रती महापुरुष तो विपरीत परिस्थितियों में दृढ रहे संभव है, पर बालोतरा के दृढ आस्तिक गुरु भक्तों के ही नहीं वरन् सामान्य-जन के मनों में भी न तो कोई चिन्ता थी , न कोई ऊहापोह। यद्यपि जोधपुर बम वर्षा करने आने वाले पाक विमानों का मार्ग बाड़मेर के सीमान्त जिले से ही था, युद्धक्षेत्र सन्निकट ही था, पर बालोतरावासियों को तो मृत्यु का भय छू भी नहीं पाया था। वे तो अभय थे। उनके मन में सहज विश्वास था कि असंख्य देवी-देवताओं द्वारा स्मरणीय पंच परमेष्ठी मंत्र के तृतीय पद का धारक, जिनशासन का अनुशास्ता, अभय का देवता एवं प्राणिमात्र के हित को चाहने वाला, भगवत् तुल्य महायोगी हमारे यहां साक्षात् विराजमान हो जिनवाणी की पवित्र गंगा प्रवाहित कर रहा है तो मृत्यु हमें भला छू भी कैसे सकती है, क्योंकि जहाँ जहाँ महापुरुष विराजते हैं, वहाँ वहाँ विपत्तियाँ या प्राकृतिक आपदाएं प्रवेश भी नहीं कर पाती। परम पूज्य भगवन्त के प्रति ऐसी जन आस्था जिनशासन की महिमा बढ़ा रही थी व सुदूर बैठे भक्तों की आशंकाओं को निर्मूल कर उन्हें भी परम पूज्य की छत्रछाया के रक्षा कवच में आने को प्रेरित कर रही
थी।
गुरुदेव ने सभी को साहस बंधाते हुए फरमाया कि आप सब धैर्य रखें । कुछ भी नहीं होगा और यही हुआ, |