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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं खाइयाँ खुदी की खुदी रह गई और सुरक्षा परिषद् ने ४८ घंटों में युद्ध बन्द का आदेश दे दिया। चरितनायक का यहाँ पर लेखन कार्य चलता रहा। धर्म श्रद्धालुओं का दूर-दूर से आवागमन रहा तथा बहुविध तप-त्याग से चातुर्मास पूर्ण सफल रहा। इन क्रियानिष्ठ ज्ञान के संगम, प्रबल पुण्यवानी व अतिशय के धनी महापुरुष के प्रति जिन धर्मानुयायी ही नहीं, समूचा बालोतरा नगर श्रद्धा व समर्पण से नत मस्तक था। चारों माह की अवधि तक सभी ने चरितनायक व संत मुनिराजों के ज्ञान क्रियासम्पन्न जीवन को देखा था, उनकी पातक प्रक्षालिनी वाणी का श्रवण किया था व उनके साधनातिशय का प्रत्यक्ष अनुभव किया था। जन - जन के मन-मन्दिर के वे आराध्यदेव थे, जिनकी प्रेरणा पर वे सब कुछ समर्पण करने को तत्पर थे। भक्तों के इस श्रद्धा समर्पण व भक्ति को चरितनायक ने सामायिक-स्वाध्याय के प्रचार-प्रसार से जोड़ने का अभिनव प्रयास किया। कहना न होगा बालोतरा क्षेत्र को धर्म क्षेत्र | के रूप में प्रतिष्ठित करने में यह चातुर्मास मील का पत्थर साबित हुआ।
____ आपने कार्तिक शुक्ला पूर्णिमा को लोंकाशाह जयन्ती के अवसर पर फरमाया कि लोंकाशाह ने स्वाध्याय के | बल से ज्ञान प्राप्त कर क्रान्ति का शंख फूंका। आज भी उसी स्वाध्याय और क्रान्ति की आवश्यकता है।
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