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नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं १५० दूर करने का मन में दृढ़ संकल्प कर लिया एवं कलह - निवारण न होने तक दुग्ध - सेवन का त्याग कर दिया. जिसका सन्तों के अतिरिक्त किसी को भी पता नहीं था। तप का अपना प्रभाव होता है। गुरुदेव सन्तमण्डली के साथ | चातुर्मासार्थ बालोतरा पधारे। • बालोतरा चातुर्मास (संवत् २०२२)
___ संवत २०२२ के बालोतरा चातुर्मास में पूज्यश्री ने सिवांची क्षेत्र में व्याप्त इस पारस्परिक मतभेद को दूर करने हेतु प्रयल किए , जो सफल रहे। यहाँ के कलह की यह स्थिति थी कि रोटी बेटी का व्यवहार बंद था। वधू को लाने गया हुआ जामाता ससुराल का अन्न-जल भी ग्रहण नहीं कर सकता था तो लाडले भय्या को राखी बांधने पितृगृह आई हुई बहिन, पितृगृह में पानी भी स्वीकार नहीं कर सकती थी। गुरुदेव की भावना थी कि ये टूटे तार | फिर से जुड़ जाने चाहिए। इसके लिए आपने समाज-प्रमुखों को समझाया। प्रवचन भी क्रोध-कलह के शमन एवं प्रेम-भाव की अभिवृद्धि को लक्ष्य में रखकर फरमाये। आपने फरमाया कि धर्म ऋजु हृदय में ठहरता है और ऋजु होने के लिए कलह-द्वेष का निराकरण आवश्यक है। समाज में एक-दूसरे पर विश्वास आवश्यक है। शरीर में आंख में चूक से कभी पैर में काँटा लग जाय तो क्या पैर आंख पर भरोसा नहीं करेगा ? और क्या आँख पैर का कांटा निकालने में सहयोग नहीं करेगी?
पूज्यपाद गुरुदेव ने फरमाया कि मनुष्य में इतना प्रेम क्यों नहीं कि वह दूसरे के हृदय में स्थान बना सके। छोटा सा कीड़ा पत्थर में घर कर लेता है। वह इंसान क्या जो दिल में घर न कर सके । आचार्य श्री यहाँ पर प्रतिदिन प्रवचन में कषाय शमन की प्रेरणा करते थे। वह प्रेरणा हृदयस्पर्शी बन गई। चरितनायक ने बालोतरा के प्रमुख श्रावक श्री बच्छराजजी अन्याव को दायित्व बोध कराते हुए फरमाया –“अन्याव जी ! समय बीत जाएगा, मात्र यश-अपयश शेष रहना है। आप इस प्रकरण में अपनी भूमिका निभाकर क्षेत्र को लाभान्वित करें।” अन्यावजी ने आपके शान्ति व प्रेम के संदेश को हृदयंगम कर समाज प्रमुखों को बुलाकर बातचीत करना प्रारम्भ किया। जोधपुर के वकील श्री संपतमलजी व गणपतचन्दजी को मध्यस्थ तय किया गया।
चरितनायक ने समाज एवं मध्यस्थों का मार्गदर्शन करते हुए फरमाया –“जैन धर्म अनेक दृष्टियों और वस्तु को भीतर-बाहर दोनों दृष्टि से निर्णय करने को कहता है। इसके सन्देशानुसार चलने से संघर्ष नहीं होता। जातीय खार मिटाने हेतु दो धाराओं को नदी के रूप में प्रवाहित करना है। छोटा सा किसान भी धारा के बीच की मिट्टी को | अलग कर दे तो दोनों धाराएँ एक हो जाती हैं। आपने चतुरविज्ञानी व शोधक बुलाये हैं। उन्हें खारे स्रोत के स्थान पर मीठे पानी का स्रोत निकालना है। आप उनके सहायक होंगे, शान्ति बनी रहे। मध्यस्थ मध्य में रहने वाले होते हैं। उनको सबकी सुनकर मन की करना है। समाज के हित की करना है, दोनों को थोड़े निकट लाना है। आशा ही | नहीं, पूरा भरोसा है कि मध्यस्थ समाज की समस्या को सुलझा कर सर्वांग पूर्ण निर्णय देंगे। भविष्य की बाधा की | रोकथाम करेंगे।'
इस कलह को दूर करने हेतु पहले विभिन्न सम्प्रदायों के महापुरुषों ने प्रयत्न किया, किन्तु सिवांची पट्टी के लोग अड़े रहे। अन्त में चरितनायक के द्वारा स्नेह एवं सद्भाव के लिए की गई प्रवचनामृत रूपी औषधि ने मनमुटाव के विष को धो दिया। ____ चरितनायक के प्रवचनामृत से प्रभावित होकर श्री बच्छराज जी अन्याव के साथ श्री बादरमलजी अन्याव, श्री (धनराजजी चोपड़ा, श्री भीकमचन्दजी सिवाणा, श्री आसाराम जी, श्री श्रीमलजी हंडिया, आहोर के श्री हजारीमल जी,