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प्रथम खण्ड : जीवनी खण्ड
१२३ समदड़ी से विहार कर पूज्य प्रवर पारलू पधारे। यहां व्याख्यान में विजय कुंवर का प्रसंग होने से एक सजोड़े | शील का खंध हुआ। यहां से कानाना फरसते हुए ५.३० बजे आपका विहार जानियाना के लिए हुआ। रास्ते में | सवा छह बजे आप बारहमासी क्वार्टर के पास नीम वृक्ष के नीचे रात्रिवास हेतु ठहरे । दूसरे दिन, जानियाना से आप || धोवन पानी लेकर बालोतरा पधारे।
अक्षय तृतीया पर आप बालोतरा बिराजे, जहाँ लूणी, सालावास, करमावास, पाली, जयपुर, अजमेर, जोधपुर आदि स्थानों से आए हुए २० तपस्वियों के पारणे सम्पन्न हुए। इस अवसर पर १३ दम्पतियों (श्री धींगडमलजी बाफना, श्री केसरीमलजी, श्री बुधमलजी पाटोदी वाले, श्री लक्ष्मणजी भण्डारी, श्री मुलतानमल जी भंसाली, श्री मुकनचन्दजी पचपदरा वाले, श्री प्रेमजी गुडवाले, श्री सांवल जी , श्री तुलसीरामजी, श्री मिश्रीमलजी पाटोदी वाले, श्री | भगवानदासजी हुण्डिया, श्री हजारीमल जी एवं श्री प्रभुलाल जी) ने आजीवन शीलव्रत अंगीकार किया।
यहाँ व्याख्यान में एक दिन बालकों में धर्म-जागृति विषयक प्रवचन से प्रभावित होकर श्रावकों ने परस्पर विचार-विमर्श कर धार्मिक पाठशाला प्रारम्भ करने की घोषणा की। यह पाठशाला सम्प्रति श्री वर्धमान आदर्श विद्या मंदिर के नाम से नियमित रूप से चल रही है, जिसमें एक कालांश धार्मिक अध्ययन का होता है। इसमें जैन-जैनेत्तर सभी छात्र जैन धर्म-सिद्धान्तों का अध्ययन करते हैं।
यहाँ से आपश्री सात किलोमीटर दूर स्थित खरतरगच्छीय बड़ा भंडार देखने पधारे। यति सुमेरमलजी, यति माणकचन्द जी ने पूर्ण सहयोग किया। वहाँ भगवती सूत्र और सचित्र कल्पसूत्र दर्शनीय थे। यहाँ छह व्यक्तियों ने सपत्नीक शीलव्रत स्वीकार किया। कुरूढियों के निवारण की भी आचार्य श्री ने महती प्रेरणा की। इस प्रकार क्षेत्र पर उपकार व धर्मोद्योत करते हुए आप बालोतरा से ७ मील का विहार कर पचपदरा पधारे जहाँ तीनों समय व्याख्यान होने लगे। कभी यहाँ ओसवालों के ७०० घर थे, वर्तमान में १००-१२५ घर हैं। केशरीमलजी लादानी यहाँ के प्रमुख श्रावक थे। सेठ गुलाबचंद जी ने सामाजिक एकता का प्रयास किया। पचपदरा से पाटोदी का ११ मील का विहार अत्यन्त विकट था। पाँवों के नीचे चुभती कंकरीली भूमि एवं ऊपर से तपता हुआ आकाश मानो मुनि धर्म के परीषहों एवं योगीराज की सहिष्णुता का परिचय ले रहा था। पुन: पचपदरा होते हुए बालोतरा पधारने पर आपकी प्रेरणा से ज्येष्ठ शुक्ला ३ को धार्मिक पाठशाला की स्थापना हुई। चरितनायक ने यहाँ आत्म-निरीक्षण की प्रेरणा दी। आपने फरमाया- “सत्य, सरलता और सादगी ही साधु का भूषण है। धर्म में गणना का महत्त्व नहीं, गुणों का महत्त्व है।" धर्म और विज्ञान के सम्बन्ध में आपने फरमाया -
१. धर्म विज्ञान का सहारा ले तो मानव की दुर्बलता है। २. विज्ञान धर्म की शरण ले तो इसमें विश्व की रक्षा है। ३. विज्ञान आरम्भ-परिग्रह को बढ़ाने वाला है। ४. विज्ञान से मानव-मन में लालसा बढ़कर अशान्ति पैदा होती है। ५. धर्म लालसा का शमन कर मानव मन को शान्ति प्रदान करता है। ६. निष्कपट प्रेम ही विश्व को सुखी करने वाला है। (गुरुदेव की डायरी से)
५१ दयाव्रत के पश्चात् ज्येष्ठ शुक्ला षष्ठी को यहाँ से विहार कर आप जसोल पधारे, जहाँ आपका | रात्रि-प्रवचन हुआ।