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________________ नमो पुरिसवरगंधहत्थीणं इससे पूर्व जयपुरसंघ के आबाल वृद्ध सदस्य बड़ी संख्या में लाल भवन में एकत्रित हुए। आचार्य श्री ने उपस्थित जनसमुदाय को सुधासिक्त सुमधुर सन्देश में फरमाया कि “हमें श्रमण भगवान् महावीर की सकलभूत हितावहा | जिनवाणी को गांव-गांव एवं घर-घर में पहुंचाने के लिए तत्पर रहना चाहिए। आप सबने जो कुछ इस चातुर्मास में सीखा है उसे आगे बढ़ाना है।" जयपुर संघ ने जयपुर-टोंक मार्ग पर सन्तवृन्द के साथ चलकर जयघोषों के बीच भारी मन से अपने पूज्य धर्माचार्य और सन्तवृन्द को विदाई दी। आचार्य श्री ठाणा ८ से सांगानेर आदि क्षेत्रों को पावन करते हुए टोंक पधारे। यहाँ पर सैलाना निवासी तत्त्वरसिक एवं तार्किक श्रावक श्री रतनलाल जी डोशी आचार्य श्री के दर्शनार्थ उपस्थित हुए। श्री डोशी जी आचार्यप्रवर के तलस्पर्शी तात्त्विक ज्ञान, तर्ककौशल, प्रवचन पाटव, वाग्वैभव आदि गुणों से परिचित थे। डोशीजी ने आचार्य श्री से अनेक शास्त्रीय विषयों पर गहन चर्चा की। आचार्य श्री ने डोशी जी की समस्त शंकाओं एवं प्रश्नों का शास्त्रीय उद्धरणों के साथ समुचित समाधान किया। डोशी जी एवं टोंक के श्रावक-श्राविकावृन्द इस तत्त्वचर्चा से बड़े प्रभावित हुए। टोंक से विहार कर तेजस्वी धर्माचार्य श्री हस्ती चौथ का बरवाड़ा होते हुए सवाईमाधोपुर पधारे, जहां कोटा | सम्प्रदाय के श्री हरखचन्द जी म.सा. के साथ बाजार में प्रवचन हुआ। यहां से आलनपुर, श्यामपुरा, रावल आदि गाँव फरसकर कुस्तला, चोरू अलीगढ, उनियारा, देई आदि क्षेत्रों में जिनवाणी का प्रचार-प्रसार करते हुए बूंदी एवं कोटा पधारे । कोटा बूंदी पुराने धर्म क्षेत्र रहे हैं, जिनकी प्रसिद्धि महिलाएँ भजन के माध्यम से गाया करती हैं। ___ चरितनायक के आध्यात्मिक एवं शास्त्रीय प्रवचनों को श्रवण कर बूंदी एवं कोटा के श्रद्धालु श्रोताओं ने आनंद | की अनुभूति की। उन्होंने अनेक व्रत-नियम अंगीकार कर अपने जीवन को सम्यक् दिशा प्रदान की। शोभागुरु के भक्त श्री चुन्नीलाल जी बाबेल अपने नगर में आचार्य हस्ती की प्रतिभा एवं प्रवचनपटुता को देखकर चकित रह गए।
SR No.032385
Book TitleNamo Purisavaragandh Hatthinam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharmchand Jain and Others
PublisherAkhil Bharatiya Jain Ratna Hiteshi Shravak Sangh
Publication Year2003
Total Pages960
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size34 MB
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