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________________ मेरी प्रत्येक साहित्यिक, सामाजिक प्रवृत्तियों में उनका मार्गदर्शन मिलता रहा। तीर्थंकर वाणी' जो अब 11 वर्ष की यात्रा कर चुकी है - उसके प्रारंभ से ही साथी यात्री रहे हैं। सदैव लेख लिखकर मार्गदर्शन देकर उसकी प्रसिद्धि हेतु चिंतित रहे हैं। प्रारंभ में मुझसे ज्यादा उन्हें चिंता रहती थी कि पत्रिका कैसे चलेगी ईस व्यापारी मानस के युग में ? वे कहते जहाँ स्वाध्याय का अभाव तो रहा है वहाँ तुम रेगिस्तान में फूल उगाने का कैसे सोचते हो ? मैं कहता कि जब आप जैसे जल देने वाले हैं तो चिन्ता क्या ? ऐसे लोगों के कारण ही आज पत्रिका 11 सफल वर्ष पूर्ण कर सकी है। इसी प्रकार जब मैंने श्री आशापुरा माँ जैन होस्पिटल का स्वप्न उनके समक्ष रखा तो उन्हें आश्चर्य हुआ। बोले : 'भाई, यह हाथी बाँध रहे हो। अच्छे-अच्छे लोग इस सेवा में थक गये। इससे आर्थिक परेशानियाँ होंगी। मैं तुम्हे रोकता नहीं हूँ पर सोच लेना।' पर मैं भी अटल था। होस्पिटल का प्रारंभ किया। आज 6 वर्ष हो गये। लगभग सवा करोड का कार्य हो चुका है। वे होस्पिटल को देखकर अति प्रसन्न हुए और जहाँ भी होता है इसे मदद-सहायता दिलाने में सहयोग करते हैं। आज भी मुझे जब भी कोई परेशानी होती है वे मुझे सलाह देते हैं। उनका एक विशेष रूप मैंने गत वर्ष भगवान महावीर के 2600 वें जन्मोत्सव के दौरान देखा । 'अहिंसा युनिवर्सिटी' के को-ओर्डिनेटर के रूप में उन्होंने एक्ट आदि बनाने में जिस दृढता और सूझबूझ का परिचय दिया वह काबिले तारीफ डॉ. कुमारपाल की इस सिद्धि में मात्र उनका ही श्रम या शक्ति है ऐसा नहीं । जैसाकि हम जानते हैं कि 'हर सफल पुरुष के पीछे एक मूक-त्यागमयी नारी का योगदान रहता है ।' यही बात डॉ. कुमारपाल के साथ है। कुमारपाल की साहित्यसाधना में कोई विघ्न न आये, कोई अंधकार न छा जाये अत: श्रीमती प्रतिमा बहन दीपशिखा सी जलकर प्रकाश फैलाती रहीं। अंत में कुमारपाल के सरल व्यक्तित्व के संदर्भ में कुछ कहने के भाव नहीं रोक पाता हूँ। इतना महान लेखक, विश्व प्रसिद्ध व्यक्तित्व, इतने पारितोषिकों से पुरस्कृत कुमारपाल स्वभाव से अति सरल, मिलनसार एवं सुख-दुःख के साथी उत्तम मित्र हैं। मुझे गौरव हैं कि मेरे हर कार्यक्रम में मैत्रीभाव से आये और सहभागी बनें। आप कभी भी उनसे मिलेंगे तो लगेगा आप वाणी के जादूगर की बीन पर झूम रहे हैं । आप चंद क्षणों में ही उनके हो जायेंगे। आपको यह महसूस नहीं होता कि वे इतने महान है और उस महानता के बोझ से दबे हैं। ____ अंत में उम्र में उनसे बडा होने के नाते चाहूँगा कि वे और आगे बढ़े । आकाश को छू लें। वे जन-जन के कुमारपाल बनकर हमारे बने रहें। मुझे गौरव है कि मैं उनकी मैत्री को पा सका। 325 शेखरचंद्र जैन
SR No.032363
Book TitleShabda Ane Shrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravin Darji, Balwant Jani
PublisherVidyavikas Trust
Publication Year2004
Total Pages586
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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