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________________ लगा। गुजराती विषय में शोधकार्य सम्पन्न किया और गुजराती के अध्यापक के रूप में शैक्षणिक कार्य में समर्पित हो गये। ‘ललना के गुण पलना में ही दृष्टिगोचर होने लगते हैं ' यह कहावत कुमारपाल में चरितार्थ हुई । जब वे 11 वर्ष के किशोर थे तभी से बाल साप्ताहिकों में कहानियाँ लिखने लगे और कॉलेज के प्रथम वर्ष से ही पत्र-पत्रिकाओं में स्तंभ लिखकर अपनी लेखन प्रतिभा के पुष्पों की सुगंध बिखेरने लगे। यह सब प्रतिफल था पिता की साहित्यिक विरासत और राष्ट्रीय शायर झवेरचंद मेघाणी, धूमकेतु, कवि काग जैसे धुरंधरों का आशीर्वाद । कलम के इस जादूगर ने फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा और देखते ही देखते शतक पुस्तकों की रचना की इमारत ही खडी कर दी। लालबहादुर शास्त्री के जीवन का चित्र यदि ‘महामानव शास्त्री' में गुंजित हुआ तो 'लाल गुलाब' उनके बाल साहित्य लेखन का सीमाचिह्न बन गया। उनके समस्त लेखन कार्य में बाल साहित्यकार की नन्हीं मनुहारें हैं तो देशभक्ति की तरंगे हैं और जीवन गाथाओं के लेखन की प्रौढता है। क्रिकेटप्रेमी कुमारपाल लेखन में सेन्चुरी बनाते रहे। ‘अपाहिज तन, अडिग मन' उनकी ऐसी श्रेष्ठ कृति है जो प्रज्ञाचक्षुओं के लिए महान उपलब्धि बन गई । इसका ब्रेइल लिपि में व भारत की अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ है। उनकी एक-एक कृति का वर्णन शोध निबंध ही बन जायेगा। यहाँ बस इतना ही कि जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिस पर उनकी दृष्टि न गई हो और कलम न चली हो । आपकी अनेक पुस्तकें राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर पुरस्कृत हुई हैं। . डॉ. कुमारपाल मात्र लेखक ही नहीं उच्च कक्षा के वक्ता है। उनके प्रवचन सुनना एक गौरव है। वे बोल रहे हों और श्रोता डोल रहे हों ऐसा अनेक बार देखा है। मैं उनका साक्षी हूँ। शब्दों का यह शिल्पी जैसे बोलने में अजन्ता या खजुराहो की कला को तराश कर शब्दों के मंदिर ही चुनता जाता है । विचारों की गहराई, कल्पना की उडान और सत्य का आधार ये इनकी वक्तृत्वता के आयाम हैं । भारत के नहीं अपितु यूरोप – अमरीका, आफ्रिका, सिंगापुर आदि देशों के श्रोता इसके साक्षी हैं । साहित्यिक वक्ता ही नहीं अपितु जैन धर्म-दर्शन के चिंतक, खोजी विद्वान कुमारपाल ने विश्व में जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में जो योगदान दिया है वह प्रशंसनीय है। आप 1990में इंग्लैन्ड के ड्यूक ऑफ एडिनबरो प्रिन्स फिलिप के बकिंगहाम पॅलेस में 'जैन स्टेटमेन्ट ऑन नेचर' अर्पित करने वाले प्रतिनिधि मंडल में थे तो 1993 व 1999 में वर्ल्ड पार्लामेन्ट ऑफ दि रिलिजियन्स' में जैन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। 1994 में ख्रिस्ती धर्म के गुरु पोप जॉन पोल से भी जैनदर्शन पर चर्चा की । जैन धर्मदर्शन पर आपके प्रवचनों ने अमरीका - यूरोप जैसे देशों में धूम मचाई है । जिससे अमरीका के प्रसिद्ध संगठन जैना' ने आपका विशेष सम्मान किया है। डॉ. कुमारपाल ने गुजराती साहित्य, जैन साहित्य, खेल साहित्य जैसे विषयों पर लेखन व प्रवचन तो किए ही पर साहित्य जगत में ऐसा स्थाई कार्य भी किया जो सदियों तक स्मरण किया जायेगा वह है गुजराती विश्वकोश का निर्माण । 323 शेखरचंद्र जैन
SR No.032363
Book TitleShabda Ane Shrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPravin Darji, Balwant Jani
PublisherVidyavikas Trust
Publication Year2004
Total Pages586
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size16 MB
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