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(१२)..... पुराण में राजा, अग्नि, इन्द्र, सोम, यम और कुबेर इन पाँच देवताओं के कार्यों को करता है । अग्नि पुराण में राजा को सूर्य, चन्द्र, वायु, यम, वरुण अग्नि, कुबेर, पृथ्वी तथा विष्णु आदि देवताओं का स्वरूप माना है। क्योंकि वह उनके समान आचरण करता है। भागवत पुराण में विष्णु, ब्रह्मा, शिव, इन्द्र, वायु, वरुण आदि देवता राजा के शरीर में निवास करते हैं। वायु पुराण में चक्रवर्ती राजा को विष्णु का अंश माना है। रामायण में भी राजा की उत्पत्ति दैवी स्वरूप बतलायी गई है।
उपर्युक्त वर्णन से स्पष्ट है कि जब राजा जिस देवता के स्वरूप का आचरण करता है, तब वह उसकी प्रतिमारूप (प्रतिमूर्ति) होता है, इसलिए राजा को दैवी अंश स्वीकार किया गया है ।
राजा की उत्पत्ति का यह दैवी सिद्धान्त बहुत प्राचीन है । लेकिन इस सिद्धान्त का प्रचलन सिर्फ गुप्तकाल तक ही रहा।
राजा की उत्पत्ति के उपर्युक्त सिद्धान्त के आधार पर हम कह सकते हैं कि जैन पौराणिक ग्रंथों में राजा की उत्पत्ति कुछ भिन्न प्रकार से ही बताई गई है । वैदिक सिद्धान्त और सामाजिक अनुबन्ध के सिद्धान्तरूप जैन मान्यतानुसार राजा की उत्पत्ति में बहुत अन्तर है । इसका कारण यह हो सकता है कि वैदिक धर्म का उत्थान पश्चिम से हुआ है और जैन धर्म का उत्थान पूर्व दिशा से हुआ है। दोनों में समय काल की दृष्टि से भी बहुत अन्तर है। दैवी सिद्धान्त और जैन पौराणिक राजा की उत्पत्ति में भी बहुत अन्तर दृष्टिगोचर होता है। दैवी उत्पत्ति का सिद्धान्त राजा की उत्पत्ति दैवीय अंश में बतलाता है जबकि जैन पुराणों में राजा की उत्पत्ति दैवी अंश न होकर मानवीय रूप में बतलायी गई है। जैन पुराणों में राजा की उत्पत्ति के संदर्भ में ईश्वर रूप को स्वीकार नहीं किया गया है । जबकि हिन्दू पुराणों में ईश्वर को महत्ता प्रदान की गई है। (III) राज्याभिषेक :
प्राचीन काल में राज्याभिषेक खूब धूम-धाम से किया जाता था। राज्याभिषेक का उल्लेख जैन पुराणों तथा रामायण आदि ग्रन्थों में बहुत विस्तार से मिलता है।
जैनागम जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में भरत चक्रवर्ती के राज्याभिषेक का विस्तृत वर्णन किया गया है।