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(८१) उसकी आज्ञा का उल्लंघन नहीं कर सकता है। समस्त विश्व उसकी आज्ञा में रहता है । उसके ऊपर जगत का शासन नहीं चल सकता। महाभारत में यह भी कहा गया है कि राजा पृथु की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान विष्ण स्वयं ने उनके अन्तर में प्रवेश किया था। समस्त नरेशों में पथ ही एक ऐसे राजा थे, जिनको सारा जगत देवता के समान मस्तक झुकाता था। इस प्रकार महाभारत में मनुष्य और देवताओं में कोई अन्तर नहीं बताया गया है। राजा ही समयानुसार पाँच रूप धारण करता है । वह कभी अग्नि, कभी सूर्य, कभी मृत्यु, कभी कुबेर, और कभी यम का रूप धारण कर लेता है।
धर्म-सूत्रों में भी यही उल्लेख है कि विभिन्न देवताओं के अंश से राजा की रचना हुई । मनुस्मृति में लिखा है कि “ईश्वर ने समस्त संसार की रक्षा के लिए, इन्द्र, वायु, यम, सूर्य, अग्नि, वरुण, चन्द्र और कुबेर के सारभूत अंशों से राजा का सृजन किया। मनुस्मृति में तो यह भी लिखा है कि राजा बालक हो तब भी उसका अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह मनुष्य रूप में देवता है।"
इसी प्रकार आचार्य शुक्र भी राजा की उत्पत्ति दैवी अंश में विश्वास करते हैं। हिन्दू पुराण में भी इस सिद्धान्त का स्पष्ट वर्णन मिलता है। मत्स्य पुराण के अनुसार संसार के प्राणियों की रक्षा के लिए ब्रह्मा ने विविध देवताओं के अंशों में राजा की सृष्टि की। विष्णु पुराण में राजा वेन के मुख से इस प्रकार के शब्द प्रस्फुटित हुए हैं - ब्रह्मा, विष्ण, महेश. इन्द्र, वायु, यम, सूर्य, वरुण, धाता, पूषा, पृथ्वी और चन्द्र इनके अतिरिक्त और भी जितने देवता शाप देते हैं और अनुकम्पा करते हैं वे सभी राजा के शरीर में निवास करते हैं । इस प्रकार राजा सर्व देवमय है। मार्कण्डेय
१. महाभारत शान्तिपर्व अ० ५६/१३५ २. वही
अ० ५६/१२८ ३. मनुस्मृति - पृ० ३१८ ४. वही
पृ० ३१८ ५. नीतिवाक्यामृत में राजनीति पृ० ६३ ६. वही पृ० ६३