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(८३) जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार भरत चक्रवर्ती का अभिषेक करने के लिए भरत की आज्ञा से अभियोगिक देव विनीता राजधानी के उत्तरपूर्व दिग्भाग, ईशान कोण में चले गये। वहाँ जाकर वैक्रिय समुद्यात की विकुर्वणा करके संख्यात योजन लम्बा दण्ड बनाया। दूसरी बार समुद्यात करके बहत ही समतल रमणीय भमि की रचना की। उस समतल भमि पर अभिषेक के लिए मंडप की रचना की फिर अभिषेक मंडप के बीच मे बहुत बड़ा अभिषेक पीठ बनाया, जो अत्यन्त स्वच्छ और चिकना था। उस अभिषेक पीठ की तीन दिशाओं में तीन सोपानों की रचना की। तत्पश्चात् उस बहुत ही सम और रमणीय भूमि के बीचों बीच में एक विशाल सिंहासन की विकर्वणा की। इस प्रकार सम्पूर्ण तैयारी के पश्चात भरत महाराजा हाथी पर आरूढ़ हुए तब उनके आगे-आगे आठ-मंगल, नवनिधि, सोलह हजार देव, बत्तीस हजार राजा आदि अनुक्रम से चलने लगे और जहाँ अभिषेक मंडप था वहाँ आकर रुके। हाथी से उतरकर भरत महाराजा ने स्त्री-रत्न के साथ, बत्तीस हजार ऋतु कल्याणियों के साथ, बत्तीस हजार जनपद कल्याणियों के साथ, बत्तीस-बत्तीस की समह वाली बत्तीस हजार नाट्य मंडलियों के साथ अभिषेक मण्डप में प्रवेश किया। प्रवेश करके जिस ओर अभिषेक पीठ था वहाँ आकर अभिषेक पीठ की अनुप्रदक्षिणा करते हुए, आगे पीछे की प्रदक्षिणा करते हुए, पूर्व दिशा की सोपान सीढ़ियों पर चढ़े । और जिस ओर सिंहासन था वहाँ आकर पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ गये।'
भरत राजा के पश्चात् बत्तीस हजार राजा जिस ओर अभिषेक मंडप है, उस ओर आकर अभिषेक पीठ की प्रदक्षिणा करते हुए उत्तर की ओर के त्रिसोपान द्वारा जिस ओर भरत राजा बैठे थे, वहाँ आकर हाथ जोड़, मस्तक पर अंजलि करके भरत राजा की जय-विजय हो, ऐसे बधाते हुए भरत राजा के न अति दूर न अति पास पर्युवासना करते हैं। (अर्थात् बैठते हैं) इसके पश्चात सेनापतिरत्न, सार्थवाह आदि भी इसी प्रकार दक्षिण बाजू के त्रिसोपान पर प्रवेश करके बैठ जाते है।
तत्पश्चात् शुभ तिथि, करण, दिवस, नक्षत्र, मुहूर्त आने पर उत्तर भाद्रपद नक्षत्र (प्रोष्ठ पाद) से विजय-मुहूर्त में बत्तीस हजार राजा उत्तम
१. जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति पक्ष ३ पृ० २८१. २. वहो पृ० २८२.