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(७९) प्रकार के वृक्ष दिखाई देते हैं लेकिन हम नहीं जानते कि उनसे अन्न किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए हे स्वामी क्षुधा की तीव्र पीड़ा से ग्रस्त इस प्रजा की रक्षा कीजिये।
इस प्रकार प्रजा की दीन प्रार्थना को सुनकर, वृषभस्वामी ने समस्त प्रजा की जो कि भूख से व्याकुल थी, देव दिव्य आहार से पीड़ा दूर की। पश्चात् आजीविका निर्वाह के उपाय तथा धर्म, अर्थ और काम रूप साधनों का उपदेश दिया। इसके अलाबा, असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य और शिल्प-कला का भी उपदेश दिया और यह भी कहा कि गाय, भैंस आदि पशुओं की रक्षा करनी चाहिए तथा सिंह आदि हिंसक पशुओं और दुष्ट जीवों का परित्याग करना चाहिए।
इसके पश्चात् भगवान ने अपने सौ पुत्रों को कला शास्त्र सिखाया जिसके द्वारा लोगों ने सैकड़ों लिपि बनाकर उन्हें अपनाया। शिल्पीजनों ने भरत क्षेत्र की भूमि पर सव जगह गाँव, नगर तथा खेट, कर्वट आदि की रचना की। उसी समय क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि वर्ग भी उत्पन्न हुए। ऋषभदेव ने अपनी पुत्री ब्राह्मी और सुन्दरी को भी विविध प्रकार की कलाओं में पारंगत किया।
जब असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों से प्रजा सुख का अनुभव करने लगी उसी समय इन्द्र सहित देवों ने आकर भगवान् वृषभ देव का राज्याभिषेक किया। उस समय अयोध्या नगरी को खूब सजाया गया था।
जम्बू द्वीप प्रज्ञप्ति, आवश्यकचूर्णि, जिनसेन विरचित महापुराण, हरिवंश पुराण आदि में राजा की उत्पति के विषय में कुछ भिन्नता दष्टिगोचर होती है । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, तित्थोगाली पइन्नय आवश्यक नियुक्ति चूणि में असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों की व्यवस्था से पूर्व ही ऋषभ स्वामी का इन्द्र द्वारा राज्याभिषेक बताया गया है, तत्पश्चात् असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों का उपदेश दिया गया है । लेकिन महापुराण, हरिवंश पुराण आदि में पहले जीविका उपार्जन के उपाय बताकर राजा का अभिषेक किया गया है । असि, मसि, कृषि, विद्या, वाणिज्य, शिल्प का उद्देश्य पूर्व में ही दिया गया है । हरिवंश पुराण में एक भिन्नता यह भी है कि जब समस्त प्रजा ऋषभ स्वामी के पास आई और अपनी वस्तुस्थिति