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________________ ( ७७ ) रचना की ।' इसके पश्चात् कोशल आदि महादेश, अयोध्या आदि नगर और वन और सीमा सहित गाँव तथा खेड़ों आदि की रचना की । सुकोशल, अवन्ती, पुण्ड्र, उंड्र, अश्मक, रम्यक, कुरू, काशी, कलिङ्ग, अङ्ग, वङ्ग, सुह्म, समुद्रक, काश्मीर, उशीनर, आनर्त, वत्स, पंचाल, मालवं, दशार्ण, कच्छ, मगध, विदर्भ, कुरू जांगल, करहाट, महाराष्ट्र, सुराष्ट्र, आमीर, कोंकण, वनवास, आंध्र, कर्णाट, कोशल, चोल, केरल, दारु, अभिसार, सौवीर, शूरसेन, उपरान्तक, विदेह, सिंधु, गान्धार, यवन, चेदि, वल्लव, काम्बोज, आरट्ट, वाल्हीक, तुरुष्क, शक और केकय इन देशों की रचना की तथा इनके अलावा और भी अनेक देशों का विभाग किया ।" 1 देशों की अन्तिम सीमाओं पर अन्तपाल अर्थात् सीमा-रक्षक पुरुष नियुक्त किये थे । उन देशों के बीच और भी अनेक देश थे जो लुब्धक, आरण्य, चरट, पुलिन्द, शबर तथा मलेच्छ जाति के लोगों द्वारा रक्षित रहते थे । उन देशों के मध्य में कोट, प्रकाट, परिखा, गोपुर, और अटारी आदि राजधानी थी । ऐसे राजधानीरूपी किले को घेरकर सब ओर शास्त्रोक्त लक्षण वाले गाँवों आदि की रचना हुई थी । इस प्रकार इन्द्र ने बड़े अच्छे ढंग से नगर, गाँवों आदि का विभाग किया था । इस प्रकार इन्द्र ऋषभ देव की आज्ञा से नगर, गाँव आदि स्थानों में प्रजा बसाकर स्वर्ग चला गया। इसके पश्चात् भगवान वृषभदेव ने अपनी बुद्धि की कुशलता से प्रजा के लिए असि, मसि, कृषि आदि छह कर्मों द्वारा आजीविका करने का उपदेश दिया था । ( सेवा करना असि कर्म, लिखकर आजीविका करना मसि कर्म, जमीन को जोतना - बोना कृषि कर्म, शास्त्र आदि पढ़ाकर अथवा नृत्य-गायन आदि सिखाकर आजीविका करना विद्या कर्म, व्यापार करना वाणिज्य कर्म और हस्त की कुशलता से जीविका करना शिल्प कर्म कहलाता था । ९. वही १६ / १५० पू० ३५६. २. महापुराण १६ / १५२-१५६ पृ० ३६० ३. वही १६ / १६३ पृ० ३६० ४. महापुराण १६ / १७८ पृ० ३६२ ५. वही
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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