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________________ (७६) जन आये और उन्होंने भगवान को सर्व अलंकारों से विभूषित देखा तब मन में विचार किया कि इस प्रकार अलंकारों से विभूषित भगवान के ऊपर किस प्रकार पानी डाले, इसलिये उन्होंने ऋषभस्वामी के पैरों पर ही जल डालकर अभिषेक किया, जिससे कि अलंकार खराब न हों। यह देख इन्द्र बहुत प्रसन्न हुआ और कहा कि ये लोग तो बहुत विनीत हैं इसलिए उसी समय कुबेर को बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी विनीता नाम की नगरी बसाने की आज्ञा दी। कुवेर ने उसी समय बारह योजन लम्बी और नौ योजन चौड़ी विनीता नाम की नगरी बसाई। जिसका कि दूसरा नाम अयोध्या भी रखा गया। इस प्रकार सर्वप्रथम राजधानी विनीता हुई। जैन ग्रंथकार जिनसेन ने भी अपने महापुराण ग्रंथ में सृष्टि के प्रारंभ का वैसा ही वर्णन किया है जैसा कि पूर्व दिया गया है । राजा की उत्पत्ति के विषय में जिनसेन ने कहा है कि संसार की अराजक स्थिति से प्रासित यौगलिकजन जीवित रहने की इच्छा से पहले नाभिराज के समीप पहंचे। तत्पश्चात् ही नाभिराज की आज्ञा से भगवान वृषभ देव के समीप पहुंचे और मस्तक झुकाकर नमस्कार किया और भगवान से निवेदन किया कि हे देव हम जीविका प्राप्त करने की इच्छा से आपकी शरण में आये हैं । अन्न और पानी से रहित हम अब एक पल भी नहीं रह सकते हैं। शीत-ताप, महाताप, महावायु और वर्षा का उपद्रव हमको बहुत दुःखी कर रहा है । इसलिए है स्वामी हमें इनके दूर करने के उपाय बताइये। इस प्रकार प्रजाजनों के दीन वचन सुनकर भगवान आदिनाथ ने सोचा कि प्रजा की असि, मसि, कृषि आदि छः कर्मों के द्वारा आजीविका करना उचित है। और क्षण-भर में प्रजा के कल्याण करने वाली आजीविका का उपाय सोचकर उन्हें बार-बार आश्वासन दिया कि तम भयभीत मत होओ। इस प्रकार भगवान के स्मरण मात्र से देवों सहित इन्द्र उपस्थित हुआ। और प्रजा को आजीविका के उपाय किये । शुभ दिन, शुभ नक्षत्र, शुभ मुहूर्त और शुभ लग्न में सर्वप्रथम इन्द्र ने मांगलिक कार्य किया और फिर उसी अयोध्यापुरी में बीचों-बीच जिन मन्दिर की १. आ० नि० गाथा २०० २. जिनसेन विरचित महापुराण १६/१३१-१३६ पृ० ३५८.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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