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भरे हुए किले थे ।' दुर्ग के विषय में विस्तृत जानकारी हम आगे प्रस्तुत करेंगे |
३. कोष :
किसी भी देश का स्थायित्व वहाँ की लक्ष्मी ( धन-सम्पत्ति ) तथा देश की सम्पन्नता पर निर्भर करता है । शास्त्रकारों ने कोष की महत्ता के दृष्टिकोण से राजा का सर्वप्रथम कोष की परिपूर्णता पर ध्यान आकर्षित कराया है । प्राचीनकाल में कोष को राज्य का मूल स्रोत बताया गया है ।
जैन पुराणों के अनुसार राजाओं के पास राजलक्ष्मी निवास करती थी, जिससे उन्हें देश व्यवस्था के संचालन में सुगमता प्राप्त होती थी । महापुराण में जैनाचार्यों ने राजलक्ष्मी को पापयुक्त वर्णित किया है । " इसके अलावा यह भी उल्लिखित किया है कि यद्यपि राजलक्ष्मी फलवती है तथापि कंटकाकीर्ण है ।
४. मित्र :
जिस प्रकार आधुनिक युग में राष्ट्रों को मित्र राष्ट्रों की आवश्यकता होती है, उन मित्र राष्ट्रों से युद्ध काल में सहयोग प्राप्त होता है । उसी प्रकार प्राचीन काल में भी राजाओं के लिए मित्र राज्य बनाना आवश्यक होता था । पद्म पुराण के अनुसार युद्ध काल में विजय प्राप्त करने के लिए मित्र राजा का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक होता था । शत्रु द्वारा
१. दुर्गविष्यासन् यथास्थानं सातत्येनानुसंस्थितैः । भूतानि यन्त्रशस्त्राम्बुयवसैन्धवरक्षकैः ।
२. महाभारत शान्तिपर्व ११९ /१६.
३. महाभारत शान्तिपर्व १३०/३५, कामन्वक ३१/३३, नीतिवाक्यामृत: सोमदेवसूरि विरचित : संशो० पं० पन्नालाल सोनी, बम्बई : भा० दि० जैन ग्रन्थमाला समिति १६७६, २१/५.
महा पु० ५४ / २४.
४. महा पु० ३६ / ६७, पद्म पु० २७ / २४-२५.
५. दूषितां कटकैरेनां फलिनीमपि ते श्रियम् । गहा पु० ३६ / ६८६ *