SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ५८ ) भरे हुए किले थे ।' दुर्ग के विषय में विस्तृत जानकारी हम आगे प्रस्तुत करेंगे | ३. कोष : किसी भी देश का स्थायित्व वहाँ की लक्ष्मी ( धन-सम्पत्ति ) तथा देश की सम्पन्नता पर निर्भर करता है । शास्त्रकारों ने कोष की महत्ता के दृष्टिकोण से राजा का सर्वप्रथम कोष की परिपूर्णता पर ध्यान आकर्षित कराया है । प्राचीनकाल में कोष को राज्य का मूल स्रोत बताया गया है । जैन पुराणों के अनुसार राजाओं के पास राजलक्ष्मी निवास करती थी, जिससे उन्हें देश व्यवस्था के संचालन में सुगमता प्राप्त होती थी । महापुराण में जैनाचार्यों ने राजलक्ष्मी को पापयुक्त वर्णित किया है । " इसके अलावा यह भी उल्लिखित किया है कि यद्यपि राजलक्ष्मी फलवती है तथापि कंटकाकीर्ण है । ४. मित्र : जिस प्रकार आधुनिक युग में राष्ट्रों को मित्र राष्ट्रों की आवश्यकता होती है, उन मित्र राष्ट्रों से युद्ध काल में सहयोग प्राप्त होता है । उसी प्रकार प्राचीन काल में भी राजाओं के लिए मित्र राज्य बनाना आवश्यक होता था । पद्म पुराण के अनुसार युद्ध काल में विजय प्राप्त करने के लिए मित्र राजा का सहयोग प्राप्त करना आवश्यक होता था । शत्रु द्वारा १. दुर्गविष्यासन् यथास्थानं सातत्येनानुसंस्थितैः । भूतानि यन्त्रशस्त्राम्बुयवसैन्धवरक्षकैः । २. महाभारत शान्तिपर्व ११९ /१६. ३. महाभारत शान्तिपर्व १३०/३५, कामन्वक ३१/३३, नीतिवाक्यामृत: सोमदेवसूरि विरचित : संशो० पं० पन्नालाल सोनी, बम्बई : भा० दि० जैन ग्रन्थमाला समिति १६७६, २१/५. महा पु० ५४ / २४. ४. महा पु० ३६ / ६७, पद्म पु० २७ / २४-२५. ५. दूषितां कटकैरेनां फलिनीमपि ते श्रियम् । गहा पु० ३६ / ६८६ *
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy