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आक्रमण होने पर विजय प्राप्त करने के लिए मित्र राजाओं की आवश्यकता पड़ती थी ।' जनेत्तर पुराणों में मित्र के महत्त्व एवं गुणों की विवेचना मिलती है । 2
जैन मान्यतानुसार जहाँ एक ओर अच्छे मित्रों की अनिवार्यता पर बल दिया गया है, वहीं दूसरी ओर दुष्ट मित्रों से सजग रहने के लिए सावधान भी किया गया है। पद्म पुराण में दुष्ट मित्रों के लिए कहा गया है कि मंत्र, दोष, असत्कार, दान, पुण्य, स्वशूरवीरता, दुष्ट स्वभाव तथा मन की दाह का ज्ञान दुष्ट मित्रों को नहीं होना चाहिए ।
(II) राज्य के चतुष्टय सिद्धान्त :
महापुराण में राज्य के चार मूलभूत तत्त्वों की विवेचना की गई है । राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए चार तत्त्व साम, दाम, दण्ड एवं भेद पर पर्याप्त रूप से प्रकाश डाला गया है ।"
1. साम :- किसी पक्ष को मिलाकर या मित्र बनाकर कार्य करना ही 'साम' सिद्धान्त है |
2. दाम : - इस सिद्धान्त के अनुसार लोभी व्यक्ति को धन देकर वश में किया जा सकता है या उससे कार्य लिया जा सकता है ।
3. दण्ड : - अन्य सिद्धान्तों के निष्फल हो जाने पर इस सिद्धान्त का उपयोग किया जाता है । यह सिद्धान्त सबसे निकृष्ट माना गया है । इसका प्रयोग करते समय अपनी सामर्थ्य का पूर्ण रूप से ज्ञान होना आवश्यक है ।
4. भेद : - इस सिद्धान्त के अनुसार शत्रु को आपस में लड़ाकर सफलता प्राप्त की जा सकती है ।
१. पद्म पु० १६ / १, ५५/७३.
२. अर्थशास्त्र ७ / ९ पृ० ४६७, महाभारत शान्तिपर्व १३८ / ११०, मनु ७/२०६. कामन्दक ४/७४-७६, ८/५२, शुक्र ४/१/८-१०.
३. मन्त्रदोषमसत्कारं दानं पुण्यं स्वशूरताम् । दुःशीलत्तवं मनोदाहं दुमित्रेभ्यो न
वेदयेत । पद्म पु० ४७/५.
४. रामायण ५ / ४१३, मनु ७/१०७, याज्ञवल्क्य १/३४६,
शुक्र ४/१/७७