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________________ ( ५७ ) (देश), दुर्ग, कोष और मित्र की विवेचना करेंगे । अन्य शेष का वर्णन यथास्थान प्रस्तुत किया जायेगा । १. जन-स्थान : राज्य के सात अंगों में से जनस्थान भी राज्य का एक अंग माना गया है । जनस्थान शब्द "राष्ट्र" के लिए प्रयुक्त किया गया | राष्ट्र शब्द का अर्थ ऋग्वेद में स्पष्ट है ।' जैन पुराणों में जनस्थान को जनपद या देश की संज्ञा दी गई है। पद्मपुराणानुसार भी जनस्थान को जनपद या देश की संज्ञा दी गई है । इससे पत्तन, ग्राम, संवाह, मटम्ब, पुरभेदन, घोष, द्रोण-मुख आदि सम्मिलित थे। महापुराण में वर्णित है कि जनस्थान की, प्रजा की सुरक्षा एवं सुव्यवस्था के लिए राजा होता है, जो कि इसकी सुख-सुविधा एवं व्यवस्था का उत्तरदायित्व स्वयं ग्रहण करता है । प्रजा इसके बदले में राजा को कर देती है । जैनेत्तर अग्निपुराण में राष्ट्र को राज्य के सात अंगों में सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है । १. गढ़ [ दुर्ग ] : प्राचीन समय में जब राज्य की उत्पत्ति हुई उस समय गढ़ या दुर्ग को ही राजधानी सम्बोधित किया जाता था । प्राचीन काल में राज्य की सुरक्षा एवं संचालन की दृष्टि से दुर्ग का महत्त्वपूर्ण स्थान था । जिस देश में दुर्ग नहीं होते, उस देश पर शत्रु राजा आक्रमण कर उसे अपने देश में मिला लेते थे । दुर्ग शत्रु के आक्रमण काल में सुरक्षा एवं सुचारू रूप से युद्ध-संचालन में सहायता प्रदान करते थे । महापुराण में वर्णित है कि उस समय यथास्थान रखे हुए यन्त्र - शास्त्र, जल, जौ, घोड़े और रक्षकों से 1 १. ममद्धिता राष्ट्र क्षत्रियस्य । ऋग्वेद ४/४२. २. पद्म पु० ४१ / ५६-५७. तुलनीय : - अर्थशास्त्र २ / १ ० ६६, मनु ७ /११४-११७. ३. पद्म पु० १८ / २७०-२८०. ४. बी० बी० मिश्र : पॉलिटी इन व अग्निपुराण, पृ० ३१ कलकत्ता : पन्थी पुस्तक, १९६५, पृ० ३१. ५. पद्म पुराण, २६/४०, ४३/२८.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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