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________________ (४८) (४) सामान्य कर्मचारी जिनको क्षत्रिय नाम से सम्बोधित किया गया।' इसके अलावा ऋषणदेव ने चार प्रकार की सेना और सेनापतियों की व्यवस्था की जिससे कि राज्य की रक्षा तथा दुप्टों को दण्डित किया जा सके। अपराधी की खोज एवं अपराध निषेध के लिए “साम-दाम-दण्डभेद” नीतियाँ चलाई। ऋषभ स्वामी ने चार प्रकार की दण्ड-व्यवस्था का नियोजन किया था :१. परिभाषण :- अपराधी को आक्रोशपूर्ण शब्दों से दण्डित करना। २. मण्डलीबंध :-अपराधी को कुछ समय के लिए स्थानबद्ध कर देना। ३. चारकबंध :-बन्दीगृह (जेल) में अपराधी को बंद रखना। ४. छविच्छेद : -अपराधी के हाथ, पैर, नाक, कान आदि उपांगों का छेदन करना। उपर्युक्त चार दण्डनीतियों के विषय में कुछ आचार्यों में मतभेद है। कुछ आचार्यों का मत यह है कि अंतिम दो नीतियाँ (चारकबंध और छविच्छेद) भरत के समय में प्रचलित हुई थीं । भरत तक सात द्रण्डनीतियां प्रचलित थीं। परन्तु भद्रबाहु के मतानुसार चारक बंध और छविच्छेद नीति ऋषभदेव के समय में ही प्रचलित हो गई थी। लोक व्यवस्था : ऋषभस्वामी ने मानव-जीवन को सुखी एवं स्वावलम्बी बनाने के लिए तथा अपना जीवन स्वयं सरलता से बिता सकें इसके लिए उन्होंने सौ शिल्प और असि, मसि, कृषि रूप तीन कर्मों का प्रजा को उपदेश दिया। शिल्प कर्म का उपदेश देते हुए प्रथम कुभकार का कर्म सिखाया वस्त्र. वक्षों के न होने पर पटकार कर्म और गेहागार-वृक्षों के अभाव में वर्धकी कर्म सिखाया। चित्रकार कर्म, रोम-नखों के बढ़ने पर काश्यप १. आ० नियुक्ति गा० २०२, पृ० ५६. . २. आ० नियुक्ति, पृ० ५८.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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