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(४७) नाभि कुलकर की आज्ञा प्राप्त कर युगलिक-जन पद्म सरोवर पर गये और कमल के पत्तों में जल लेकर आए। इसी बीच इन्द्र का आसन चलायमान हुआ, इन्द्र ने अवधिज्ञान से देखा और सर्व ऋद्धि के साथ सभी लोकपालों के साथ वहाँ आया। इन्द्र ने सविधि सम्मानपूर्वक देवगण के साथ ऋषभदेव का राज्याभिषेक किया और उन्हें राजायोग्य आभूषणों से विभूषित किया।'
जब युगलिक लोग आए और उन्होंने देखा कि भगवान का अभिषेक तो हो गया, क्योंकि उन्होंने भगवान को सर्व अलंकारो से विभूषित देखा । परितोष से जिनके मुख विकसित हुए, उन्होंने जाना कि हम अलंकारों से विभूषित राजा के ऊपर कैसे जल डालें, इसलिए पैरों पर ही पानी डाल दिया, जिससे कि अलंकार खराब न हों। यह देख इन्द्र विचार करने लगा कि यह लोग तो वहुत विनीत हैं इसलिए विनीता नाम की नगरी बसाई। इस नगरी का दूसरा नाम अयोध्या भी कहा जाता है।'
इस प्रकार ऋषभदेव उस समय के प्रथम राजा घोषित हुए। ऋषभदेव प्रथम राजा, प्रथम जिन, प्रथम केवली, प्रथम तीर्थंकर, नीति के प्रथम प्रकाशक कहे जाते थे। ऋषभ स्वामी ने पूर्व से चली आ रही कुलकर व्यवस्था का अंत करके नूतन राज्य-व्यवस्था का निर्माण किया था। शासन व्यवस्था :
(१) राज्यपद पर आरूढ़ होने के पश्चात् सर्व प्रथम ऋषभदेव ने राज्य की सुव्यवस्था और विकास के लिए प्रथम आरक्षक दल की स्थापना की। उसके अधिकार “उग्र' कहलाये।
(२) राजकीय व्यवस्था में परामर्श के लिए एक मंत्रिमण्डल का निर्माण किया, जिसके अधिकारी “भोग” कहलाये।
(३) परामर्श-मण्डल की स्थापना की गई, जो सम्राट के सन्निकट रहकर उन्हें समय-समय पर परामर्श (सलाह) देते रहते।
१. आ० नि० गा० १६६, पृ० ५६. २. वही गा० २००, पृ० ५६.