SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भागवत् में ऋषभदेव को यज्ञपुरुष विष्णु का अंशावतार माना गया है। उसके अनुसार भगवान नाभि का प्रेम-सम्पादन करने के लिए महारानी मरुदेवी के गर्भ से दिगम्बर सन्यासी वातरशना-श्रमणों के धर्म को प्रकट करने के लिए शुद्ध सत्यमय विग्रह से प्रकट हुए । यथा : "भगवान् परमर्षिभिः प्रसादितो नाभेः प्रियचिकीर्षया तदवरोधायने मरुदेव्यां, धर्मान्दर्शयितुकामो वातरशनानां श्रमण नाभृषीणामूर्ध्व मन्थिनां शुक्लयां तन्वावततार।"". राज्याभिषेक : अन्तिम कुलकर नाभि के समय प्रचलित “धिक्कार दण्डनीति" जब प्रभावहीन सिद्ध हुई तब युगलिक लोग ऋषभ स्वामी के पास पहुंचे और उन्हें अपनी वस्तुस्थिति का परिचय कराते हुए सहयोग की याचना करने लगे। तब ऋषभस्वामी ने कहा कि प्रजा में अपराधी मनोवृत्ति न पनपे तथा मर्यादा का यथोचित पालन हो सके इसके लिए दण्डव्यवस्था होती है, जिसका संचालन स्वयं राजा करता है और वही समय-समय पर दण्डनीति में सुधार कर सकता है। लेकिन राजा का पहले राजपद पर अभिषेक किया जाता है। यह सुनकर "युगलियों" ने कहा कि महाराज आप ही हमारे राजा बन जाइये। इस पर ऋषभस्वामी ने कहा कि आप इस विषय के लिए नाभि कुलकर के पास जाकर निवेदन करो, वही आपको राजा देंगे। यह सुनकर युगलियों ने नाभि कुलकर के पास जाकर निवेदन किया । नाभि ने उनकी विनम्र प्रार्थना सुनकर कहा- मैं तो अब वृद्ध हो गया हूं, अतः तुम ऋषभ को ही राज्यपद देकर राजा बना लो। (इस पंक्ति से विदित होता है कि उस समय जवान (वयस्क) ही राजा होता था।) १. श्रीमद्भागवत् : वेदव्यास, गोरखपुर, गीता प्रेस १६५३, ५/३/२०. २. आवश्यक नियुक्ति गा० १६७, पृ० ५५. ३. वही गा० १९८, पृ० ५५.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy