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________________ ( ४५ ) की व्यवस्था चलती रही । सात कुलकरों में से प्रथम दो तथा पन्द्रह कुलकरों में से प्रथम पाँच कुलकरों की यह नीति थी । (२) " मक्कार दण्डनीति' :- जब लोग "हा" करने से नहीं मानने लगे और अपराध करते ही रहे तब उच्चस्वर में " मा " यानि " मत करो” कहकर अपराधी को दण्ड दिया जाता था । मानव स्वभाव में पूर्व की अपेक्षा परिवर्तन आ गया था। तीसरे, चौथे कुलकर तथा छठे से दसवें कुलकर तक यह दण्डनीति प्रचलित थी । (३) “ धिक्कार दण्डनीति" : - जब मानव "हा" और " मा " नीति का भी उल्लंघन करने लगे तब “ धिक्कार" नीति का आविर्भाव हुआ । इस समय मानव बहुत चालाक और शैतान हो गया था। पिछले तीन तथा ग्यारहवें से चौदहवें कुलकरों तक यह नीति चलती रही । जैन आगमों में वैसे सात प्रकार की दण्डनीतियों का उल्लेख मिलता है । १४ कुलकरों और सात कुलकरों के समय तीन दण्डनीतियाँ ही प्रचलित थीं । बाकी चार दण्डनीतियाँ ऋषभ स्वामी और भरत चक्रवर्ती के समय प्रचलित हुई थीं । 1 अन्तिम कुलकर नाभि के समय में प्रारम्भ हुई " धिक्कार" दण्डका जब उल्लंघन होने लगा, तथा युगलिकों को कल्पवृक्षों से प्रकृति सिद्ध भोजन प्राप्त होता था, वह अपर्याप्त हो गया तब युगलिक लोग घबराकर ऋषभ स्वामी के पास आये । जैन परम्परानुसार ऋषभ स्वामी अन्तिम कुलकर नाभि की पत्नी मरुदेवी की कुक्षि से उत्पन्न हुए थे । जैन परम्परां की तरह वैदिक परम्परा के साहित्य में भी ऋषभदेव का विस्तृत परिचय उपलब्ध है । जैनेत्तर पुराणों में ऋषभ का वर्णन इस प्रकार मिलता है । ब्रह्मा जी ने अपने से उत्पन्न अपने ही स्वरूप - तुल्य को प्रथम मनु बनाया | फिर स्वायंभवु मनु को प्रियव्रत से आग्नीध्र आदि दस पुत्र उत्पन्न हुए । आग्नीध्र से नाभि और नाभि से ऋषभ हुए ।' श्रीमद् १. श्री विष्णु पुराण : अनुवाद श्री मुनिलाल गुप्ता, गोरखपुर गीता प्रेस, अंश २, अ० १, श्लोक ७/१६/२७. "भगवान परमर्षिभि: "
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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