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वैवस्वत के बाद मार्कण्डेय पुराण में ५ सार्वाण, तथा रौच्च और भौत्य ये सात मनु माने गये हैं ।
इस प्रकार उपर्युक्त चौदह मनुओं के नाम बतलाये गये हैं ।
जैन मतानुसार सात या चौदह कुलकरों का उल्लेख हुआ है । जिनमें से विमलवाहन नाम के कुलकर को दोनों मान्यताओं ने स्वीकार किया है । समवायांग, स्थानांग, भगवती सूत्र, आवश्यक निर्युक्ति, आवश्यकचूर्णी के अनुसार प्रथम कुलकर विमलवाहन हुए हैं। चौदह कुलकरों की श्रेणी में विमलवाहन का सातवाँ नम्बर आता है । विमलवाहन कुलकर का वर्णन इस प्रकार आता है कि किसी समय वन प्रदेश में घूमते हुए एक मानव - युगल को किसी श्वेत वर्ण के हाथी ने देखा, देखकर उसे अपने पूर्वजन्म का स्मरण हुआ, और स्नेहवश उसे अपनी पीठ पर बिठा लिया। लोगों ने जब इस आश्चर्यचकित घटना को देखा तो वह कहने लगे कि “यह गजारूढ व्यक्ति हम सभी में श्रेष्ठ है । इसलिए इसे अपना नेता स्वीकार कर लिया जाये । उज्जवल वाहन होने के कारण लोग उसे विमलवाहन कहने लगे । इससे पता चलता है कि उस समय कुलकरों का वाहन हाथी था । विमलवाहन ने सबके लिए मर्यादा निश्चित की और मर्यांदा का उल्लंघन करने वालों के लिए दण्ड व्यवस्था बनाई । '
उपर्युक्त कुलकरों के समय तीन प्रकार की दण्डनीति प्रचलित थीं । (१) हक्कार ( २ ) मक्कार ( ३ ) धिक्कार ।'
( १ ) " हक्कार दण्डनीति" : जब कोई व्यक्ति मर्यादा का उल्लंघन करता तब “हा” तूने क्या किया, ऐसा कहना ही अपराधी के लिए दण्ड था । उस समय का लज्जाशील और स्वभाव से संकोचशील प्रकृति वाला मानव इसी दण्ड को कठोर दण्ड मानता था। एक बार दण्डित होने पर पुनः गल्ती नहीं करता था । इस प्रकार बहुत समय तक हक्कार दण्डनीति
१. आवश्यक नियुक्ति भद्रबाहु, सूरत, जैन ग्रंथमाला गौरीपुरा, गाथा १५४, पृ० ५०.
२. वही गा० १६७, पृ० ५१.