________________
है । आवश्यक नियुक्ति, एवं आवश्यक चूर्णी में भी सात कुलकर मान्य किये गये हैं । इस मान्यतानुसार सात कुलकरों के नाम निम्न हैं -
(१) विमलवाहन (२) चक्षुष्मान् (३) यशोमान् (४) अभिचन्द्र (५) प्रसेनजित् (६) मरुदेव (७) नाभि।
जिनसेन विरचित महापुराण में चौदह और जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति में कुल १५ कुलकरों का उल्लेख है । जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति के अनुसार कुलकरों के नाम निम्नलिखित हैं :
(१) सुमति (२) प्रतिश्रुति (३) सीमंधर (४) सीभंधर (५) क्षेमंकर (६) क्षेमंधर (७) विमलवाहन (८) चक्षुष्मान् (६) यशस्वी (१०) अभिचन्द्र (११) चंद्राभ (१२) प्रसेनजित (१३) मरुदेव (१४) नाभि (१५) ऋषभ ।
जैन साहित्य की तरह वैदिक साहित्य में भी इस प्रकार कुलकरों का वर्णन आता है । वहाँ कुलकरों के स्थान पर प्रायः मनु शब्द का प्रयोग हुआ है । मनुस्मृति में, स्थानांग सूत्र के सात कुलकरों की तरह सात महातेजस्वी मनु इस प्रकार बताये हैं।'
(१) स्वयम्भू (२) स्वरोचिष् (३) उत्तम (४) तामस (५) रैवत (६) चाक्षुष (७) (वैवस्वत)।
मत्स्य पुराण में, मार्कण्डेय पुराण, देवी भागवत, और विष्णु पुराण में स्वयम्भू आदि चौदह मनु बताये गये हैं
(१) स्वायंभुव (२) स्वारोचिष (३) औत्तमि (४) तामस (५) रैवत (६) चाक्षुष (७) वैवस्वत (८) सावर्णि (६) रोच्य (१०) भौत्य (११) मेरु सावणि (१२) ऋभु (१३) ऋतुधामा (१४) विश्वक्सेन।
१. मनु अ०/१/६१-६२-६३. नोट :-मनुओं के विस्तृत परिचय के लिए मत्स्य पुराण के ६ वें अध्याय से २१ वें
अध्याय तक देखें । मत्स्य पुराणः कृष्णद्वैपायन विरचित, कलकत्ता : गुरुमण्डल ग्रन्थमाला, १६५४.