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________________ (४२) भी नहीं थे, न कोई शोषक था न कोई शोषित । न चोरी थी, न असत्य अब्रह्मचर्य सीमित था, मारकाट और हत्याएं नहीं होती थीं। ___ अवसर्पिणीकाल का पहला आरा व्यतीत हुआ, पश्चात् दूसरा व्यतीत हुआ, तीसरा भी लगभग व्यतीत होने वाला था, कुछ समय अवशेष था, तब सहज समृद्धि का क्रमिक ह्रास होने लगा। भूमि का रस चीनी से भी जो ज्यादा मीठा था वह कम होने लगा। तीन, दो और एक दिन के बाद भोजन की परम्परा टूटने लगी, कल्पवृक्षों की शक्ति भी क्षीण होने लगी। ऐसी परिस्थिति के दौरान कुलकर व्यवस्था का उद्भव हुआ। कुलकर व्यवस्था असंख्य वर्षों के पश्चात् नये युग का आरम्भ हुआ । संक्रान्ति काल चल रहा था । एक ओर तो आवश्यकता पूर्ति के साधन कम होने लगे, दूसरी तरफ जनसंख्या और जीवन की आवश्यकताएं बढ़ने लगीं। ऐसी परिस्थिति में संघर्ष और लूट-खसोट होने लगी। परिस्थिति ने मानव स्वभाव में परिवर्तन ला दिया । अपराधी मनोवृत्ति के बीज पनपने लगे। अपराध और अव्यवस्था ने उन्हें एक नई व्यवस्था के निर्माण की प्रेरणा दी। जिसके फलस्वरूप “कुल' व्यवस्था का विकास हुआ। लोग कुल के रूप में संगठित होकर रहने लगे। उन कुलों का एक मुखिया होता था जो कि कुलकर कहलाता था। यह सर्वसत्ताधीश होता था । जैन मान्यतानुसार राजपद से पूर्व सम्पूर्ण भारतवर्ष में कुलकर व्यवस्था थी। इनका कार्य कुल की रक्षा करना, तथा नीति-नियम बनाना था। उस समय में युद्ध आदि प्रचलित नहीं हुआ था। कुलकरों के विषय में जैनागम, पुराण शास्त्रों के मत जैनागम : स्थानांग, समवायांग और भगवती सूत्रमें सात कुलकरों का उल्लेख नोट-कुलकरों के विषय में विशेष जानकारी के लिए जैन प्राचीन ग्रंथ (श्रीयति वषभाचार्य विरचित : तिलोय पण्णती भाग १ शोलापुर, जैन संरक्षक संघ, १९३६) के चतुर्थ महाधिकारी की ४२१ से ५०६ तक की गाथाएँ देखिए।
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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