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________________ (२८) सेनगणि हैं। प्रथम खण्ड के बीच का और अन्तिम भाग खण्डित है । दूसरा खण्ड अप्रकाशित है। कथा का विभाजन छ: भागों में किया गया है। कहुप्पति (कथा की उत्पत्ति), पीढिया (पीठिका), मुह (मुख), पडिमुह (प्रतिमुख), सरीर (शरीर) और उपसंहार (उपसंहार)। प्रथम खण्ड के प्रथम अंश में सात लंभक हैं । यहां से शरीर विभाग आरम्भ होता है और दूसरे अंश के २६वें लंभक तक चलता है। वसुदेव भ्रमण के वृतान्त की आत्मकथा का विस्तार इसी विभाग से शुरू होता है । उक्त लंभकों में से १६ और २०वें लेंभक उपलब्ध नहीं तथा २८ बां लंभक अपूर्ण है। दूसरे खण्ड के अनुसार वसुदेव सौ वर्ष तक परिभ्रमण करते रहे और सौ कन्याओं के साथ उन्होंने विवाह किया। वसुदेव भ्रमण के अतिरिक्त अनेक अन्तर्कथाएं हैं, जिनमें तीर्थंकरों तथा अन्य शलाका पुरुषों के चरित्र हैं। ४. आवश्यक नियुक्ति : आचार्य भद्रबाहु ने जैनागमों के पारिभाषिक शब्दों की व्याख्या करने के लिए प्राकृत पद्य में नियुक्तियों की रचना की। नियुक्ति की व्याख्या पद्धति बहुत प्राचीन है। इन्होंने दस नियुक्तियों की रचना की थी। आचार्य भद्रबाह कृत दस नियुक्तियों में से आवश्यक नियुक्ति सर्वप्रथम है । “आवश्यक नियुक्ति का समय पांचवीं-छठी शताब्दी के मध्य का है। इसमें ऋषभदेव के पूर्वभव एवं कुलकरों की चर्चा प्रारम्भ होती है। नियुक्ति के अनुसार अन्तिम कुलकर नाभि थे, जिनकी पत्नी मरुदेवी थीं। उन्हीं की कुक्षि से ऋषभदेव का जन्म हुआ था। इसमें ऋषभदेव के जीवन सम्बन्धी निम्न घटनाओं का वर्णन किया गया है । - जन्म, नाम, बुद्धि, जातिस्मरण, विवाह, अपत्य, अभिषेक, राज्य संग्रह आदि। इन घटनाओं के साथ-साथ युग के आहार, शिल्प कर्म, १. प्राकृत साहित्य का इतिहास; पृ० ३८१.... २. वहीं पृ० ३८२. ३. वही ४. मोहनदास मेहता सम्पा० दलसुखभाई मालवणिया, तथा डा. मोहनलाल मेहता : जैन साहित्य का बृहद् इतिहास भाग ३, वाराणसी : पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान १९६७, पृ० ७७.
SR No.032350
Book TitleBharatiya Rajniti Jain Puran Sahitya Sandarbh Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhu Smitashreeji
PublisherDurgadevi Nahta Charity Trust
Publication Year1991
Total Pages248
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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